आज भी अक्सर ख्यालों में आती है तेरी मोहक मुस्कान,
माँ, सच मे ही,तेरा अस्तित्व था हमारा अभिमान।।
एक नाम तेरा लेने में सिमट जाता है पूरा जहांन।
यूँ ही तो नही थे, तेरे, इतने प्यारी माँ इतने कद्रदान।।
मैने भगवान को तो नहीं देखा,पर मां होती है सच में ही भगवान।।
मां के रहते रहते समझ नहीं पाते हम क्या होती है मां,सच में रह जाते हैं नादान।।
रहते हैं जो संग मां के,हैं सच में वे ही धनवान।।
हम तो कली,पत्ते हैं उस चमन के,
जिसकी मां होती है बागबान।।
मां कब,क्या,कैसे,कितना करती है हमारे लिए,ये तो सोचना भी कर देता है हैरान।।
हमे हम से ज्यादा जानने वाली,
शक्ल देख हरारत पहचानने वाली,
जिंदगी का परिचय अनुभूतियों से कराने वाली,
हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली,
हर समस्या का समाधान बन जाने वाली,
चेतन अचेतन दोनो में सदा के लिए बस जाने वाली,
हमारी सोच,कार्य शैली में सदा के लिए बस जाने वाली मां,कुदरत का सबसे अनमोल वरदान।।
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