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प्यार चाहिए, कटार नहीं((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

दिल तो हमारा भी 
आपके जैसा ही है,
हमे भी चाहिए प्यार,
नहीं चाहिए कटार।।

हम भी नर्म हैं बहुत भीतर से,
न हो अब और
 क्रंदन,चीत्कार और हाहाकार।।
अहिंसा परमो धर्म हमारा,
क्यों भूल जाते हो बार बार????
जो जीवन हम दे नहीं सकते,
उसे लेने का आपको किसने दिया अधिकार????

यूं ही तो नहीं,
ये सावन भादों इतने गीले गीले से होते हैं।
ये तो आंसू हैं बेबसी के हमारे,
जो आसमां में खुल कर रोते हैं।।

दी होती, जुबान गर हमें खुदा ने,
हम भी निज एहसासों का कर देते इजहार।
बस एक बार झांक कर देखो नयनों में हमारे,
 रेजा रेजा रूह हमारी हो जाती है ज़ार ज़ार।।

यूं ही तो नहीं आती ये सुनामी
ये अकाल और ये वैश्विक महामारी।
ध्यान से देखो,ध्यान से सोचो,
ये तो कायनात में तडफती रूह हैं हमारी।।

हे मानव! क्यों बनते हो दानव???
दिए हैं प्रकृति ने तुम्हें खाने को कितने ही अगणित उपहार।
फिर ऐसी भी क्या मजबूरी है,
मात्र जिह्वा के स्वाद की खातिर,
बड़ी सहजता से चला देते हो
 मुझ पर निर्मम कटार।।

 मलिन मनों से ये धुंध कुहासे जब भी हट जाएंगे इंसान।
निर्मल मन हो जाएगा,
भाग जाएगा चित से ये निर्दय शैतान।।

फिर हम सब के,सब हमारे होंगे,
सुंदर हो जाएगा जहान।
हम भी बेखौफ हो कर ईद मनाएंगे,
जन्नत सी धरा बन जाएगी फिर वरदान।।
सर्वे भवन्तु सुखिन का बजेगा शंखनाद,
निर्भयता का कर लोगे आह्वान।।

सब निर्भय हों,सब हों आनंदित,
रहना है इस जग में दिन चार।
दिल तो हमारा भी आपके जैसा ही है,चाहिए हमे प्यार,नहीं चाहिए कटार।।


सही मायनों में यही होते हैं मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे और सारे तीर्थ धाम।।
*जीयो और जीने दो* को अपना कर ही शुभ हो जाता है हर काम।।
हम निर्दोषों का रक्त बहा कर,
क्या चित में नहीं पनपते हैं विकार??
क्या झांकते नहीं कभी अंतर्मन के गलियारों में,
क्यों आत्ममंथन कर,
 नहीं कर पाते हो आत्मसुधार???

कयामत के दिन क्या दोगे जवाब तुम?????
होगी गर्दन नीची और नयन शर्मसार।।
दिल तो हमारा भी 
आपके जैसा ही है,
हमें भी चाहिए प्यार,
नहीं चाहिए कटार।।

वो पर्व भी क्या पर्व है,
हों बेबसी,खौफ,और आहें जिसका आधार।
लबों पर मुस्कान का कारण बने,
इस जग में पूरा संसार।।

क्या लाए थे,क्या ले जाना है??
बददुआओं से बदल जाता है 
कर्मों का सार।।
आए हो गर प्राणी जगत में,
सीखो करना सब से प्यार।।

धर्म के नाम पर निर अपराधियों की कुर्बानी तो कलंक है समाज पर,
अब तो इस सत्य को कर लो स्वीकार।।
बहुत हो गया,अब तो रोक लो,
हम पर चलाना ये क्रूर कटार।।

सौ बात की एक बात है,
प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।।
सही मायनों में होगी ईद वो,
जब मिलेगा हम को आपका प्यार,
नहीं मिलेगी कटार।।
         स्नेह प्रेमचंद

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