पग पग पर देनी पड़ सकती है अग्नि परीक्षा,परीक्षक हो जाती है कायनात ये सारी।।
बच्चे और पति को सोया छोड़ नहीं जा सकती वो,
दोनो ही उसकी जिम्मेदारी।
सत्य की खोज में भी जाने की उसकी कभी नहीं आ सकती बारी।
सीता तो बन सकती है,
पर बुद्ध नहीं बन सकती नारी।।
जाएगी तो मिलेगी भगोड़ी की संज्ञा,
बुद्ध की भांति भगवान की संज्ञा से नहीं नवाजी जाएगी।
उसके पास तो विकल्प ही नहीं हैं,
वो कैसे किसी वृक्ष तले तप कर पाएगी???
सो जाते हैं अधिकार उसके लिए,
बस जागृत रहती है ज़िम्मेदारी।।
सीता तो बन सकती है,
पर बुद्ध नहीं बन सकती नारी।।
औरों की खुशी में ही खोजनी पड़ती है उसे खुशी अपनी,
बेशक अपनी खुशी पड़ी रहती है, जैसे राख के ढेर में कोई
सुलगती चिंगारी।
सीता तो बन सकती है,
पर बुद्ध नहीं बन सकती नारी।।
सीता ने तो संग राम के,
किया चौदह वर्षों का बनवास।
बनवास राम को मिला था,
सीता को नहीं,
फिर भी बिन राम के महलों में रहना उसे आया नहीं रास।।
सच्चा साथ निभाया उसने,
सोचो कितनी पतिव्रता थी वो नारी।
बुद्ध तो सोती छोड़ यशोधरा को चले गए वन को,
रोक सकी ना वो बेचारी।।
उर्मिला से बिन पूछे सुमित्रानंदन ने,
संग भ्राता के जाने की,
कर ली थी तैयारी।।
कैसे इस पुरुष प्रधान समाज में अपनी भी मन की बता सके नारी???
पग पग पर देनी पड़ती है अग्निपरीक्षा,
परीक्षक हो जाती है कायनात ये सारी।।
नारी के भूगोल को सब रहते हैं जांचते,
पर चुरा लेते हैं नयन,
जब मनोविज्ञान को पढ़ने की आती है बारी।।
सीता तो बन सकती है,पर बुद्ध नहीं बन सकती नारी।।
स्नेह प्रेमचंद
So true
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