Skip to main content

समाधान हेतु आगमन,संतुष्टि सहित प्रस्थान ((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

समाधान हेतु आगमन,
संतुष्टि सहित प्रस्थान
इसे ही सार्थक करने हेतु,
सतत प्रयासरत हमारा संस्थान।।

ग्राहक तो उद्देश्य है बाधा नहीं,
ग्राहक से ही है हमारा संस्थान।
संतुष्ट ग्राहक है धरोहर निगम की,
जानें हम, न रहें अनजान।।

मेहमान नहीं वो तो पारिवारिक सदस्य है निगम का,
हो बेहतर, करें, तत्क्षण उसकी समस्या का समाधान।।
ग्राहक तो हमारी ब्रांड का सशक्त एडवोकेट है,
इस सत्य को लें अब पहचान।।
समाधान हेतु आगमन,
संतुष्टि सहित प्रस्थान।।

सुरक्षा,संरक्षा और समृद्धि,
सीधा सरल निगम का विज्ञान।
समाधान हेतु आगमन,
संतुष्टि सहित प्रस्थान।।

परिकल्पना, प्रतिबद्धता और प्रयास
 है, निगम हमारा इन्हीं से खास। खासियत थी खासियत है खासियत ही रहेगी इसका परिधान।।
समाधान हेतु आगमन
संतुष्टि सहित प्रस्थान।।

 वायदा किया जो,उसे पूरा निभाया है, अपने अस्तित्व पर हमें अभिमान
 कर्म के कावड़ में जल भरकर मेहनत का, तृप्त हुआ है पूरा जहान।।
 समाधान हेतु आगमन
 संतुष्टि सहित प्रस्थान।।
 
जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी सच्चा साथ निभाने का हमने करवाया सबको आभास।
 भारतीय जीवन बीमा निगम से पॉलिसी धारक को होती सदा सच्ची आस।।
सबको साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति हमारी,
हो सर्वत्र सर्वदा सबका साझा विकास।।
 विकास की सीढ़ी चढ़े हम नित  तत्परता से,
त्वरित, त्रुटि रहित सेवा का ग्राहक को दे देते इनाम
 समाधान हेतु आगमन,
 संतुष्टि सहित प्रस्थान।।

 सुरक्षा सहेजें, समस्याओं को समेटे, एलआईसी के ये दो हाथ
 सुख हो चाहे दुख की बेला,
 दोनों में ही देते हैं साथ।।

 अपनी इसी सकारात्मक सोच से बना रहे हम अलग पहचान।
समाधान हेतु आगमन,
 संतुष्टि सहित प्रस्थान।।

 अति विशिष्ट है ग्राहक हमारा,
 करते आगे बढ़कर समस्या का समाधान।
उसकी सेवा करके,
 हम नहीं करते उस पर एहसान।।

वह हम पर नहीं, हम निर्भर हैं उस पर, है पॉलिसी धारक निगम की जान। समाधान हेतु आगमन 
संतुष्टि सहित प्रस्थान।।

हर पॉकेट में हों अब विभिन्न पॉलिसी, इस लक्ष्य को निगम ने लिया है जान।
 सब की भलाई की सोची है हमने, 
परमार्थ हमारी है पहचान।
 समाधान हेतु आगमन 
संतुष्टि सहित प्रस्थान।।

* योगक्षेम वहाम्यहम्*
 परम ध्येय है यही हमारा।
*सर्वे भवन्तु सुखिना* के भाव को, तहे दिल से हम ने स्वीकारा।।
 *जनकल्याण*से ओतप्रोत है,
 सच में हमारी संस्था बड़ी महान।
समाधान हेतु आगमन 
संतुष्टि सहित प्रस्थान।।

 सकारात्मक सोच के पंख लगा कर, भरी है हमने ऊंची उड़ान
हर वर्ग की समझी जरूरत,
हर वर्ग का रखा ध्यान।।
 समाधान हेतु आगमन 
संतुष्टि सहित प्रस्थान।।
इसे ही सार्थक करने हेतु,
सतत प्रयासरत,हमारा संस्थान।।

 रहे आनंद जीवन में सदा,
 जीवन लाभ का किया आह्वान।
 समाधान हेतु आगमन
 संतुष्टि सहित प्रस्थान।।
 जीवन लक्ष्य रहा सदा उच्च हमारा, मूल में इसके जनकल्याण
 जीवन अमर हो जन-जन का,
 जीवन सुरक्षा का सब पहने परिधान। 
समाधान हेतु आगमन
 संतुष्टि सहित प्रस्थान।।

हर वर्ग का बने सहारा,
 ऊंची सोच, सकारात्मक परिणाम।।
 मूल में एक यही सोच हमारे,
हो जीवन आरोग्य सब का भगवान।।

 आधार स्तंभ है निगम हमारा,
 जीवन उमंग इसकी पहचान।
 जीवन आरोग्य हो जनजन का,
कैंसर कवर का भी प्रावधान।।

मजबूत आधारशिला है 
एलआईसी हमारी,
 जन जन जाने यह विज्ञान।
 हर तरुण का जीवन हो चिंता रहित, हो शांति जीवन में सबके, 
*योगक्षेम वहाम्यहम्* का हम करते गुणगान।।
हम मित्र हैं जीवन के सच्चे,
हर कोमल जीवन को बना देते बलवान।
जीवन सरल भी कर दिया निगम ने,
दुष्कर राहों को बना दिया आसान।।
समाधान हेतु आगमन,
संतुष्टि सहित प्रस्थान।।

मजबूत आधारशिला है 
एलआईसी हमारी,
 जाने जन-जन, देती यह जीवनदान
हो जाए गर कोई अनहोनी,
जख्मी नहीं होने देती स्वाभिमान।।
 भरोसा न टूटे,स्वाभिमान ना रूठे,
सच में निगम, धरा पर,सब को है वरदान।। 
निवेश प्लस होता रहता है नित नित,
 किस किस उत्पाद का करें बखान???
अपने आंचल में समेटे हुए है ये सुमन अगणित,जीवन हुआ जिनसे आबाद,
रही बनी सबकी आन बान और शान।।

 समाधान हेतु आगमन,
 संतुष्टि सहित प्रस्थान।।
        स्नेह प्रेमचंद

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...

बुआ भतीजी