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अरदास((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

कर जोड़ हम कर रहे,
परमपिता से यह अरदास।

मिले शांति माँ की पावन आत्मा को,
है प्रार्थना ही हमारा प्रयास।

कर्म की हांडी में सदा,
माँ मेहनत की भाजी बनाया करती।

प्रेम का उस मे छोंक लगा कर
हमे परोस परोस कभी न थकती।

प्रेम से ही होता आया है
घर,परिवार, समाज,देश,विश्व का विकास।।

माँ बहुत कुछ सिखा गयी हमको,
उसके कर्म ही उसके व्यक्तित्व का करा देते है आभास।।

बेशक तन तो माँ का आज नही है हमारे पास।
पर हैं तो वो हर लम्हे में हमारे,माँ सच मे ही थी कुछ खास।।

सोच में है,विचारों में है,कार्यशैली में है
है कोई शाम ऐसी,जब माँ न ही हमारे पास।

कर जोड़ हम कर रहे, परमपिता से यही अरदास।
जहाँ भी हो,मिले शांति माँ को,
माँ शब्द से ही अंतरात्मा की बुझ जाती है प्यास।।

शोक नहीं,संताप नहीं,
हम गर्व से आज गुनगुनाएंगे।
मिले शांति मां की दिवंगत आत्मा को,कर के नमन, हम शीश 
झुकाएंगे।।
युग आएंगे,युग जाएंगे,
मां सा दूजा ना कभी पाएंगे।।
आने वाली पीढ़ियों को भी जब
मां के बारे में बताएंगे।
ऐसी भी होती है मां,उन्हें कैसे यकीन दिलाएंगे?????
यकीन को भी नहीं आएगा यकीन,
मां तो सच में थी ऐसी,जैसे सुमन में सुवास।।
मिले शांति उनकी दिवंगत आत्मा को,है प्रार्थना ही हमारा प्रयास।।

फिर आ गई वो पांच अगस्त,
बीते, मां को गए आज पूरे पांच साल।
सौ बात की एक बात है,
मां सा मिल ही नहीं सकता कोई
पुर्सान ए हाल।।
लम्हा लम्हा बीत रही जिंदगानी में,
हो ही नहीं पाता आभास।
मन के आइने में तो आज भी चमकता है प्रतिबिंब मां का,
लगता है, 
है, जैसे यहीं कहीं हमारे पास।।

सच में मां कहीं भी कहां जाती है,
हमारी सोच में सदा ही करती है आवास।।
कर जोड़ हम कर रहे,
परम पिता से यह अरदास।
मिले शांति मां की दिवंगत आत्मा को, है प्रार्थना ही हमारा प्रयास।।

एक मां को होती है सच्ची श्रद्धांजलि यही,
उसके बच्चों के दिलों के जुड़े रहें 
सदा तार।
सब देखें अक्स मात पिता का एक दूजे में,ऐसा होता है उनकी सोच का आधार।।
मनभेद न हो कभी किसी में,
इसी भाव की मां करती है ऊपर से भी बौछार।
यूं ही तो नहीं कहा जाता,
मां के लिए बच्चे होते हैं उसका पूरा संसार।।
मुख्य को गौण, गौण को मुख्य समझने का हो बेहतर हम न करें प्रयास।
मिले शांति मां की दिवंगत आत्मा को,है प्रार्थना ही हमारा प्रयास।।
            भावपूर्ण श्रद्धांजलि

                स्नेह सावित्री प्रेमचंद
      



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