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आज भी जब आते हैं सपने((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आज भी जब आते हैं सपने,
वो घर पुराना ही सपनो में आता है।
जहां ज़िन्दगी का परिचय हुआ था अनुभूतियों से,
कहाँ बचपन सहज रूप में गुनगुनाता है।

जहाँ माँ से खिलता आंगन था,
जहाँ बाबुल की सत्ता होती थी।

एक वो भी ज़माना था कितना प्यारा
जब लेमन और पापड़ की भी कीमत होती थी।

जब पार्क में जाना भी उत्सव से कम न होता था।
आइसक्रीम मिल जाती तो वो शुभ महूर्त होता था।

जहाँ न  कोई चित चिता थी,
हम बड़े चाव से रहते थे।

लड़ते भी थे,झगड़ते भी थे,
पर दिल की सब एक दूजे से कहते थे।

सरल,सहज ,स्वभाविक सा बचपन
एक कमरे में ही कितने लोग हम रहते थे।।

हो जाता था अक्सर मतभेद मगर मनभेद कभी न होता था।
बिन सुलह किए रात को कोई भी तो नहीं सोता था।।

सच में वो बचपन कितना प्यारा था।।
जहां कोई चित चिंता नहीं होती थी।।
मन आनंदित और चेतना पुलकित रहती थी।।

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