माँ बच्चों की अनेकों गलतियों पर सदा समझौते का तिलक लगाती है,खुद गीले में रह कर वो बच्चों को सूखे में सुलाती है,माँ बरगद की है वो ठंडी छैयां, जो जीवन की तपिश से बचाती है,बच्चों के सपनो के आगे अपनी इच्छाओं की कुर्बानी चढ़ाती है,कर्म की कावड़ में जल भर मेहनत का बच्चों का जीवन सफल बनाती है,हर माँ को शत शत नमन है मेरा,जो जीवन की किताब के हर पन्ने को ममता की स्याही से लिख जाती है,पर कई बार हम ही नही पढ़ पाते उन अक्षरों को,जिन्हें वो बार बार समझाती है,आती तो है हमे समझ,पर जब वो जग से चली जाती है,अपने खून और दूध से सींच कर, वो जीवन पथ पर हमें आगे बढ़ाती है,बेशक अपना हो उसका अग्निपथ,पर शिकन माथे पर नही लाती है,यही कारण है शायद माँ तभी ईश्वर के समकक्ष नज़र आती है
कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...
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