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भाई का स्नेह निमंत्रण बहना के नाम((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण,
 तूं देख इसे न ठुकराना।
मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल कर,
तूं बिन दस्तक के आ जाना।।
मां नहीं है तो क्या, मैं तो हूं,
देख मेरी बहना,जल्दी आना।।

तकूंगा राह टकटकी लगा कर,
न आने का, नहीं चलेगा बहाना।।।
हर आहट पर नजर होगी चौखट पर,
मेरी मां जाई,अपने मायके आना।।

तेरी खोजी निगाहें आज भी
खोजती हैं मां को जिस देहरी पर,
मैं वहीं मिलूंगा बैठा तुझे,
देख जरा न देर लगाना।
मैं फिर से जी लेता हूं बचपन 
तुझ से मिल कर,
बहुत आता है याद वो गुजरा जमाना।।
मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल कर,
तूं बिन दस्तक के आ जाना।।

वो मां का बाजारों के चक्कर लगाना,कभी ये सूट लाना,
कभी वो चादर लाना।
फिर हौले से हाथ थाम कर तेरा,
तुझे अपने कक्ष में ले जाना।
,सब मुझे भी उतना ही याद है मेरी
प्यारी बहना,
था कितना प्यारा वो गुजरा जमाना।

चेतना में होता था स्पंदन,
जिजीविषा लेती थी अंगडाई।
कोई चित चिंता नहीं होती थी,
सहजता की उल्लास से हो गई थी सगाई।।
होती थी विदा जब तूं देहरी से,
मां भीतर जाकर कितना रोती थी।।
तेरे सजल नयन भी नजरें चुराते थे,
मुझे अजीब सी वेदना होती थी।।
फिर मौन मुखर हो जाता था,
दस्तूर ए जहान है ये,बेटियों का लगा रहता है आना जाना।।
मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल कर,
तूं बिन दस्तक के ही भीतर आना।।

सब याद है मुझे, मैं सच में कुछ भी
नहीं भूला,
बस तूं भी हमे भूल न जाना।
मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल कर,
तूं बिन दस्तक के आ जाना।।

बेशक मैं कहता नहीं हूं कभी तुझे,
पर सागर सी गहराई सा तुझ से प्यार।
अधिक तो कहना नहीं आता मुझे,
होते हैं तुझ में मां के दीदार।।
जब से गए हैं मां बाबुल,
तेरी जिम्मेदारी का मिला मुझे अधिकार।।
मैं भी उलझा हूं मेरे घरौंदे में,
पर तेरे आने से सुलझ से जाते हैं मन के तार।।
मेरे मन के तारों को झंकृत करने,
कर ले पक्का तेरा मायके जाना।
मैं वहीं देहरी पर मिलूंगा तुझे टकटकी लगाए,देख मेरी जीजी
जल्दी आना।।

देख दो दिन पहले ही आ जाना,
करेंगे बचपन की वो बातें पुरानी।
वो मां बाबुल का ठंडा सा साया,
थी तूं उनकी लाडली गुडिया रानी।।
कभी सताता था जब मैं तुझ को,
फिर चलता था वो रूठना मनाना।।
तकूंगा राह टकटकी लगाए,
देख,मेरी बहना जल्दी आना।।
मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल कर,
तूं बिन दस्तक के आ जाना।।

तूं फिर पहले सा लड़ना मुझसे,
फिर वो पहले सा मुंह फुलाना।
मैं झट से मना लूंगा तुझे लाडो,
देख तूं भी हौले से मान जाना।।

फिर ओढ़ परिधान तूं मुस्कान का,
नेह तिलक मेरे भाल लगाना।
दूं शगुन तुझे जब मैं बहना,
नयन सजल तूं मत कर जाना।
मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल कर,
तूं बिन दस्तक के ही आना।।

छोटी छोटी बातों को साझा
 करने वाले हम,
अब एक दूजे से बड़ी बड़ी
बातें भी लगे हैं छिपाने।
एक ही घर में पले बढ़े हम,
बेशक अलग अलग बसा लिए आशियाने।।
मां को तो फिर भी हाल ए दिल
तूं बड़े प्रेम से बताती थी।
नयन बताते थे तेरे,
तूं मां से कुछ भी नहीं छिपाती थी।।

मां जैसा तो मैं नहीं हूं बहना,
फिर भी कुछ भी कहने में कभी न हिचकिचाना।
मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल कर,
तूं बिन दस्तक के आ जाना।।

जानता हूं मैं,मानता हूं मैं,
तूं अपनी ही जिम्मेदारियों के चक्रव्यूह में उलझी उलझी सी
 रहती है।
हिया में हों चाहे कितनी ही सुनामी,
पर लबों से कुछ भी नहीं कहती है।।
*सब अच्छा है,सब बढ़िया है*
 कह कर देख,कोई बड़ी बात न कभी छिपाना।
मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल कर,
तूं बिन दस्तक के आ जाना।।

भेज रहा हूं तुझे स्नेह निमंत्रण,
इसे पढ़ कर,बहना तूं मुस्काना।
तकूंगा राह मैं टकटकी लगाए,
सुन मेरी बहना,जल्दी से आ जाना।।

जब जब तूं बाबुल मां के आंगन में
आती है।
फ्रेम में टंगी उनकी फोटो जैसे हौले हौले मुस्कुराती है।।
मैं भी खुश होता हूं बहना,
हो सके तो दो दिन पहले ही आ जाना।
मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल के,
तूं बिन दस्तक के आ जाना।।
        स्नेह प्रेमचंद



 

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