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वह जाने क्या क्या सिखा गई((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

वह जाने क्या क्या सिखा गईं??????
ज़िन्दगी का परिचय अहसासों से करा गई।।
कथनी से बेहतर है करनी,
ये अच्छे से जतला गई।
कभी न रुकी,कभी न थकी, जिजीविषा का अनहद नाद बजा गई।।

कर्म की कावड़ में जल भर कर हमें आकंठ तृप्त करा गई।
कर्म ही परमानन्द है,ये अच्छे से समझा गई।।

आनंद देने में है,लेने में नही,
इस भाव की घुट्टी पिला गई।
सहजता,समर्पण,प्रेम,संतोष,
कर्म,संस्कार,मेलजोल 
इन सातों रंगों का इंद्रधनुष मन मे जैसे बना गई।
वह विविध रंगों की रंगोली हमेशा के लिए  सजा गई।।

वह कर्म का ऐसा अनहद नाद बजा गई जो लक्ष्य के घर तक पहुंच गया।
वह सोच,कर्म,परिणाम का सम्बंध बखूबी समझा गई।
सपने निश्चित ही होते हैं पूरे,
ख्वाब को हकीकत में बदलना सिखा गई।।

वह रिश्ते निभाना सिखा गई,
वह फिर गई कहाँ, वह तो सर्वत्र है,
वह माँ, सखी,प्रथम शिक्षक का फर्ज बखूबी निभा गई।

वह हमारे जन्म से अपनी मृतयु तक अपने दिल मे रखना सिखा गई।।
वह सीमित उपलब्ध संसाधनों में बेहतरीन करना हमे बता गई। बड़ा शिक्षक मुझे तो कोई समझ नही आता आपको????

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