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कथनी से है करनी बेहतर((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

वह जाने क्या क्या सिखा गई???
कथनी से है करनी बेहतर,
बिन बोले बहुत कुछ करके दिखा गई।।

बुलंद हो हौंसले तो मिल जाती है मंजिल,
 बहुत अच्छे से जता गई।
 वह जाने क्या क्या सिखा गई।।
संकल्प से सिद्धि तक का सफर बिन रुके,बिन थके ही पूरा करके दिखा गई।।

 फर्श से और अर्श तक का सफर बखूबी हो सकता है पूरा, 
गर हों सच्चे प्रयास हमारे,
 वह करके सच्चे प्रयास
 इस सफर को पूरा करके दिखा गई।।
सोच,कर्म,परिणाम की त्रिवेणी बखूबी बहा गई।
 वह जाने क्या क्या सिखा गई।।

गंगोत्री से गंगासागर तक के सफर में पावन निर्मल गंगा सी संग अपने
जाने क्या क्या बहा गई???
दीया तो कहीं भी होगा चमकेगा ही,
अपने संग संग तूं हमे भी चमका गई।।
तूं जाने क्या क्या सिखा गई।।

मुलाकातें अधिक हों ज़रूरी नहीं,पर मुलाकात जो भी हो,उसमे एक बात हो,अपने जीवन से सबको सिखा गई।।
*कोई शर्त होती नहीं प्यार में* इस उक्ति को सार्थक बना गई।।

*दरो दीवार से घर नहीं होता घर होता है इंसानों से*
एक अच्छा इंसान बन कर दिखा गई।।
वह जाने क्या क्या सिखा गई।।

अहम से वयम, स्व से सर्वे होता है सदा ही बेहतर ,
यह कहकर नहीं, करके दिखा गई।
 वह जाने क्या क्या सिखा गई।।

 कोई बाधा नहीं बन सकती बाधक, घर निर्धारित लक्ष्य हों,सच्चे प्रयास हों, मुकाम हो ही जाता है हासिल,
वह हासिल करके दिखा गई।।
 वह जाने क्या क्या सिखा गई।
 
प्रेम ना जाने सरहद कोई,
प्रेम न जाने जात और पात,
 ढाई अक्षर बड़े प्रेम के आत्मसात करके दिखा गई।।
वह जाने क्या क्या सिखा गई।।

 मित्र के इत्र से महक जाता है चरित्र और हो जाता है पवित्र,
 सच में वह पवित्र होकर दिखा गई। वह जाने क्या क्या सिखा गई।

*संतोष होता है परम धर्म*
धीरज का पाठ सबको पढ़ा गई।
 *दया धर्म का मूल है* कहकर नहीं करके सबको बता गई।
वो जाने क्या-क्या सिखा गई।

 *मुस्कान से बेहतर नहीं कोई परिधान*
 मुस्कान को जीवन का पैगाम बनाकर हर दिशा में पहुंचा गई।
 वह जाने क्या क्या सिखा गई।

 संघर्षों से बिखरी नहीं, निखर गई, जीवन अपना एक उदाहरण बना गई।
 वह जाने क्या क्या सिखा गई।

 *भाव के भूखे हैं भगवान*अपनी भक्ति से सबको सिखा गई।
मधुर बोली से बना सकते हो सबको अपना,
बोल मधुर बोल सबको अपना बना गई।
वह जाने क्या क्या सिखा गई।।

*संगीत भोजन है रूह का*
वह संगीत प्रेमी, एक कभी न रुकने वाला अनहद नाद सा बजा गई।।
*जिंदगी के हर मोड़ पर कुछ न कुछ सीखा जा सकता है*
वह ज्ञान का अथाह भंडार, ज्ञान सरिता नहीं,ज्ञान का सागर बहा गई।

बड़प्पन उम्र का मोहताज नहीं होता*
घर में सबसे छोटी,पर विचार पुंज में सबसे बड़ी जाने क्या क्या सिखा गई।
परस्थिति से बड़ी मन स्थिति होती है,
अपनी इच्छाशक्ति से सब कुछ दिखा गई।।
*मां सब्र का पर्याय है,जीवन में सबसे अच्छी राय है*
ये बन एक बेहतरीन मां
औरों को भी सिखा गई।।

ये तेरा घर ये मेरा घर कुछ नहीं होता जीवन में,
ये सार सबको समझा गई।।
घर में सबसे छोटी,पर सबसे बड़े औरा सागर सी शांत,अनंत,गहरी सहज रहना सिखा गई।।

हर रिश्ते की है अपनी ही मर्यादा और गहराई, हर किरदार अपना बखूबी निभा गई।।
पराए भी हो जाते हैं अपने प्रेम का,
बिगुल प्रेम का बजा गई।।

जिंदगी बड़ी हो ज़रूरी नहीं,पर जितनी भी हो,उसमे काम बड़े बड़े हों,सिखा गई।।
   स्नेह प्रेमचंद

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