शिक्षक दिवस विशेषांक,,,,,सबसे पहला शिक्षक जीवन में माँ होती है,माँ ऐसा शिक्षक है जो हम से जुड़ने के बाद ताउम्र नाता नही तोड़ता,माँ ज़िन्दगी के पाठ अनुभवों की स्याही से मानसपटल में अंकित करा देती है,माँ सारी शिक्षा बिना फीस के कराती है,लेती नही देती रहती है,पर इसे विडंबना कहे या दुर्भाग्य हम इन पाठों को देखते तक नही,माँ तो पूरा जोर लगा देती है,ताउम्र सिखाने वाली माँ को हम गुरुदक्षिणा में क्या देते है,विचार कीजिये????उसे हमारे कुछ लम्हे और मधुर बोल ही तो चाहिए,और कुछ नहीं,कुछ भी तो नहीं।।जिंदगी के किसी किसी मोड़ पर तो हम मां से बात करने से भी कतराने लगते हैं,जो हमे पल भर भी अपनी नजरों से ओझल नहीं होने देती,उसे जीवन की शाम में तन्हा छोड़ हम इतने सहज शांत कैसे रह सकते हैं???? जो हमे शब्दावली सिखाती है, हर क्यों,कैसे,कब,कितने का उत्तर बन जाती है,उससे ही बात करते हुए कतराते हैं हम! है न विचित्र????
स्नेह प्रेमचंद
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