Skip to main content

Posts

Showing posts from October, 2021

विशेष ही जब न रहे शेष???

दीवाली में इस बार

बधाई बधाई

भाई बहन के प्रेम का

भाई बहिन के स्वार्थरहित प्रेम का प्रतीक है भाई दूज का पावन त्यौहार,सबसे लंबे साथ के साथी,लड़ते,झगड़ते,पर फिर भी मन से करते प्यार,नये रिश्तों के नए भंवर में बहना उलझ सी जाती है,पर शायद ही कोई शाम होगी ऐसी,जब याद उसे न आती है,परदेस में भी अपनी सोच में वो सदा जगह भाइयों को देती है,कुछ लेने नही आती हैं पीहर बहने,बस कुछ बचपन के पल बाबुल के आंगन से चुपके से चुरा लेती है,पर समय की कैसी चलती है अजब गजब पुरवाई, एक अनोखी औपचारिकता ने धीरे धीरे इस रिश्ते में जगह बनाई,वो लड़,झगड़ कर एक हो जाने वाले,बाद में आम सी बात कहने का भी खो देते है अधिकार,क्या यही होता है आप बताओ भैया दूज का पावन त्यौहार।।

समस्या नहीं समाधान

समय से अधिक

जितना निर्मल मन

ओ री सखी

सखी  ओ री सखी तेरे अनुभव हमको  कितना कुछ यूं सिखा गये,  कब है चलना और है थमना अनजाने ही बता गये।  तेरी पारखी नजरों से  कितना कुछ हमने जान लिया,  दुनिया के रंग रूप अलग संग तेरे पहचान लिया।  सरल,सहज और दयावान जो करुण ह्रदय और भावप्रधान जो सावित्री-प्रेम का रखे मान जो मात-पिता का करे गान जो।  ऐसी सखी है हमने पायी प्रेमवचन जो लेकर आयी,  मनोविचार कहे ओ री सखी सुन चहुँ ओर तेरी शीतलता है छायी हम तो हैं तेरी परछाई,तुझसे हमने प्रीत लगाई।

गर्द हटा दो

इस बार दीवाली में ((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सुपुर्द ए लेखनी

घर संग मन की भी गर्द झाड़ लें ((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

चुप रहे तो

जो आया दिल में

रंजिश

आए थे हरि भजन को((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

गुड खाए

अंतर

का वर्षा जब कृषि सुखाने

चिराग तले अंधेरा

प्रेम और अधिकार

दरक sa जाए

जुबान

अलग

गर चुप रहते हैं

वो जब याद आए

आली री

माई री

क्या होता है मां त्योहार???

अचनक ही तूं याद आ जाती है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

दीवाली

स्वर्ग

श्रद्धा और धैर्य

कौन है ये चित्रकार

माई री

क्या होता है मां त्योहार

खिसकती जिंदगी

जब

ज़रूरी तो नहीं((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आज वो फिर से याद आई((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आज वो फिर से याद आयी,माँ की दीवाली पर मन से की गयी बेहतरीन सफाई,वो ईंटों के फर्श को बोरियों से रगड़ रगड़ कर कर देना लाल,वो पूरे घर को पाइप से धोना,माँ सच में थी तू बड़ी कमाल,वो काम खत्म कर माँ संग तेरे जो जाना होता था बाजार,अब रोज़ बाज़ारों में जा कर भी नही मिलती ख़ुशी वो,तेरी  कर्मठता हर शै को कर देती थी गुलज़ार,वो खील पताशे आज के छप्पन भोगों से भी होते थे माँ लज़ीज़,वो आलू गोभी की सब्जी संग माखन के ,तृप्ति होती थी कितनी अज़ीज़,माँ सच में तेरी प्यार की दस्तक से खिल सी जाती थी दिल की दहलीज,जोश,उत्साह,तरंग से भरपूर जीवन का माँ तूने विषम परिस्थितियों में भी क्र दिया शंखनाद,शायद ही कोई शाम होगी ऐसी,जब आयी न होगी तेरी याद,ज़िन्दगी के सफर में तेरे साथ ने प्यारा सा एक साथ निभाया,तुझे कह लेते थे मन की पाती, ये बाकि जहाँ तो लगता है पराया, तू कितनी आपसी सी थी,तू कितनी  सच्ची सी थी,आज ये एहसास और जा रहा है गहराया,तू जहां रहे,मिले शांति तेरी दिवंगत आत्मा को,दीवाली के इस पावन पर्व पर दिल ने दोहराया

जन्म कविता का

अहम से वयम((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ये मैने तो सिर्फ लिखा है,पर तूने इसे जीया है वो मां जाई।।

ब्लैक एंड वाइट

खास इसलिए नहीं

कोई और नहीं((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))