क्या सच में हम कुछ अपने ख़ास लोगों को भूल जाते हैं?,या उनकी उपेक्षा कर के हमे अच्छा लगता है,या किसी गलत फहमी का शिकार हो जाते हैं,या बातचीत कम कर के इस खाई को और बढ़ा देते हैं, हम सब एक निश्चित समय के लिए एक रंगमंच पर हैं, हम समसामयिक हैं, रिश्तों की जिस डोर से बंधे हैं,उसको प्रेम से निभाएं तो अच्छा होगा,उपेक्षा कर के समय निकल दिया,बाद में पछताये तो क्या लाभ,सही समय पर सही अहसास ज़रूरी हैं,उन् अहसासों की अभिव्यक्ति ज़रूरी है,साथ वक़्त बीतना ज़रूरी है,एक दिन जब वो अपने ही नही होंगे,तो इस वक़्त का क्या करोगे,ज़रा सोचिए
कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...
Comments
Post a Comment