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सुरक्षा,संरक्षा और समृद्धि((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सुरक्षा संरक्षा और समृद्धि,
 सीधा सरल निगम का विज्ञान।
 सुखद वर्तमान,
उज्जवल भविष्य की आशा,
 यही निगम की सच्ची पहचान।।

सुरक्षा सहेजे, समस्याओं को समेटे, एलआईसी के ये दो हाथ।
 सुख हो या फिर दुख की बेला,
 दोनों में ही सदा देते हैं साथ।।

 *विश्वास* की अलख जले निरंतर,
 निगम मानवता को वरदान।
*सुरक्षा संरक्षा और समृद्धि*
 सीधा सरल निगम का विज्ञान।। समाधान हेतु आगमन,
संतुष्टि सहित प्रस्थान।
 इसे ही सार्थक करने हेतु,
 सतत प्रयासरत हमारा संस्थान।।

संतुष्ट ग्राहक,अच्छा बीमा,
संतोषप्रद सेवा,सुरक्षा और विश्वास।
 यही धरोहर है सच्ची निगम की,
हो ना इसमें कभी कोई ह्रास।।

 तूं नहीं, मैं नहीं,इसे संभव कर सकते हैं सबके साझे प्रयास।
 अहम से वयम, स्व से सर्वे का बजा बिगुल, 
निगम को बना देते हैं खास।। 
खास निगम से बड़ी ऊंची आस है,
 ऊंचे सपनों का निगम कर रहा आह्वान।।
* सुरक्षा संरक्षा और समृद्धि* सीधा सरल निगम का विज्ञान।
 सुखद वर्तमान, उज्जवल भविष्य की आशा, यही निगम की पहचान।। 

*परिकल्पना प्रतिबद्धता और प्रयास*
 है निगम हमारा इन्हीं से खास। खासियत है खासियत थी खासियत रहेगी सदा इसका परिधान।।
 समाधान हेतु आगमन, संतुष्टि सहित प्रस्थान।।
 सुरक्षा संरक्षा और समृद्धि
 सीधा सरल निगम का विज्ञान।।

वायदा किया सदा निगम ने पूरा,
 निगम को अपने अस्तित्व पर अभिमान।
 कर्म की कावड़ में जल भर मेहनत का तृप्त हुआ है पूरा जहान।।

सुरक्षा,संरक्षा और समृद्धि,
 सीधा सरल निगम का विज्ञान।।
 सुखद वर्तमान, उज्जवल भविष्य की आशा,यही निगम की पहचान।।

कल खेल में हम हों न हों,
 पर अपनों के मुख पर रहे मुस्कान। सपने पूरे हों सदा सबके,
 बना रहे सब का स्वाभिमान।।
 समाधान हेतु आगमन,संतुष्टि सहित प्रस्थान।

 *जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी*
सच्चा साथ निभाने का हमने सबको करवाया आभास।
 ऐसा अनमोल निगम हमारा,
 पूरी करता,सदा सब की आस।।

सबको साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति हमारी,
 हो सर्वत्र सर्वदा सबका साझा विकास।
 विकास की सीढ़ी चढे हम नित तत्परता से,
 त्वरित, त्रुटि रहित सेवा का सदा देते इनाम।।
सुरक्षा संरक्षा और समृद्धि सीधा सरल निगम का विज्ञान।
 इसी सकारात्मक सोच मे,
 बना रहा निगम अपनी अलग पहचान।।

 अति विशिष्ट है ग्राहक हमारा,
आगे बढ़ समस्या का करते समाधान। उसकी सेवा करके हम नहीं करते उस पर कोई एहसान।।

 वह हम पर नहीं हम निर्भर हैं उस पर, है ग्राहक निगम की सच में जान। सुरक्षा संरक्षा और समृद्धि सीधा सरल निगम का विज्ञान।।

हर पॉकेट में हो एक पॉलिसी इस लक्ष्य को निगम ने लिया है जान। सबकी भलाई सोची है हमने,
 *परमार्थ*है हमारी पहचान।
सुरक्षा,संरक्षा और संवृधि,
सीधा,सरल निगम का विज्ञान।।

*योगक्षेम वहाम्यम*
 परम ध्येय है यही हमारा।
सर्वे भवन्तु सुखिन के भाव को,
तहे दिल से हमने स्वीकारा।।
*जनकल्याण* से ओत प्रोत है,
सच संस्था हमारी बड़ी महान।

सकारात्मक सोच के पंख लगा कर
सदा भरी निगम ने ऊंची उड़ान।
हर वर्ग की समझी जरूरत,
हर वर्ग का रखा ध्यान।

इतने वर्षों के लंबे सफर में,
बना ली निगम ने अपनी पहचान।।
सबके भले में छिपा है भला हमारा,
जन कल्याण हमारी पहचान।।
सुरक्षा,संरक्षा और संवृधि,
सीधा सरल निगम का विज्ञान।।
      स्नेह प्रेमचंद

 

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