Skip to main content

दीपावली का अर्थ

दीपों की माला दीपावली पर्व भारतीय संस्कृति में दिनकर की भांति देदीप्यमान है यह पर्व संयम सौहार्द मर्यादा संस्कार और उल्लास का प्रतीक है असत्य पर सत्य की अधर्म पर धर्म की जय का शंखनाद युगों युगों से कर रहा है दीपावली पर घर की सफाई भी प्रतीकात्मक है यह सफाई मात्र घर के सामान की ही नहीं अपितु मन के नकारात्मक भावों की भी सफाई करना है मलिन मनो से धुंध कुहासे, अंधकार, अवसाद,विषाद ईर्ष्या, द्वेष और अहंकार जैसे विकारों का शमन करना है।सबसे बड़ा संदेश दीपावली के पर्व का यह है कि आप कितने भी ज्ञानी कितने भी बड़े इंसान क्यों ना हो परंतु सर्वप्रथम संस्कारी होना सबसे ज्यादा जरूरी है। रावण ज्ञान में किसी से कम नहीं था परंतु उसके सीता हरण के दोष ने उसके समस्त गुणों पर पानी फेर दिया। रामायण की कहानी से यह संदेश सब को आत्मसात कर अपने जीवन में उतारना चाहिए। मित्रता_मित्रता का आधार कभी धर्म जाति आर्थिक स्तर नहीं होता।राम की हनुमान से, वानरों से ,सुग्रीव से मित्रता इस बात का प्रतीक है।मर्यादा राम के चरित्र से साफ साफ प्रतीत होता है कि व्यक्ति को जीवन में अपनी सभी मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए तभी आपका चरित्र उच्चतम सौपानों को छू सकता है ।प्रेम__ प्रेम से सुंदर भावना कोई नहीं होती। राम का माता पिता के प्रति प्रेम, लक्ष्मण का अपने भ्राता के प्रति प्रेम, सीता का पति के प्रति प्रेम,राम का समस्त परिजनों के प्रति प्रेम इन सभी बातों का द्योतक है। भक्ति भाव__ हनुमान का राम के प्रति भक्ति भाव आज भी संपूर्ण ब्रह्मांड में महसूस किया जा सकता है। भाव के भूखे हैं भगवान। यह मानस का मुख्य भाव है जब जब धर्म की हानि होती है,साधुओं की रक्षा के लिए ईश्वर अवतार लेते हैं,बुराई का संहार करते हैं।उल्लास_राम रावण का वध कर सीता को छुड़ा कर जब तीनो वापस आते हैं प्रजा अपने स्नेह,उल्लास की अभिव्यक्ति दीप जला कर करती है।

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...