हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
भोर भी है उदास उदास।
दोपहर थकी,रात कुछ रोई रोई सी,
क्योंकि तूं नहीं अब मेरे पास।।
यह जो सेहर ((सागर)) था
तेरे वजूद का,
सच में,
मैं,तिनका तिनका सी बह गई।
आज भावों को जब शब्दों का पहना रही हूं परिधान,
सारी मन की कह गई।।
जरूरी तो नहीं अभिव्यक्ति से रंगा हो हर एहसास।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
हर भोर भी है उदास उदास।
दोपहर थकी,रात कुछ रोई रोई सी,
क्योंकि तू नहीं अब मेरे पास।।
संकल्प से सिद्धि तक,
छिपे हुए हैं जाने कितने ही प्रयास।
हर बाधा को पार करती गई तू,
और सच में ही बन गई तू खास।।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
हर भोर भी है उदास उदास।।
कुछ लोग जेहन में सच में ऐसे बस जाते हैं।
जैसे बच्चे घर में घुसते ही मां को आवाज लगाते हैं।।
ऐसे भावों से लबरेज सा व्यक्तित्व तेरा,
अपनत्व की आती थी सुवास।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
भोर भी है उदास उदास।।
तू ही केंद्र, तू ही परिधि,
तू ही बहना थी री व्यास।
जाने वाले भला कब लौटते हैं,
व्यर्थ लगाना है इसकी आस।।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
हर भोर भी उदास उदास।।
दोपहर थकी,रात सोई सोई सी, क्योंकि तू नहीं अब मेरे पास।।
शिखर तक पहुंचने के बाद भी, कितना सरल सहज था जीवन तेरा।
मावस की काली रात में थी,
तू सच में पूनम का सवेरा।।
गई पूनम और आ गई मावस,
क्या जाएगी यह,
नहीं होता आभास।।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
भोर भी है उदास उदास।।
सुर, सरगम, संगीत है बेटी,
घर, आंगन,दहलीज है बेटी,
सौ बात की एक बात है,
हर रिश्ते में सबसे अजीज है बेटी।
स्नेह,शिक्षा,लिहाज, संस्कार,
संयम और तमीज है बेटी।
तेरे बारे में मां पापा भी बड़े गर्व से कहते थे, ऐसी ही तो यह छोटी बिटिया है हमारे पास।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
भोर भी है उदास उदास।।
मेरे तसव्वर में तो,
तेरा होना ही था, बहुत ही खास।
कितनी अलग थी तू ओ मेरी मां जाई!
वजूद तेरा एक मधुर एहसास।।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
भोर भी है उदास उदास।।
जुगनू नहीं आफताब थी तू,
हर्फ नहीं पूरी किताब थी तू,
सबको अच्छी लगी किताब तू,
विषय वस्तु सबको आई बड़ी रास।
कोई कोई होता है ऐसा,
रहना चाहता हो हर कोई जिसके पास।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन
और भी है उदास उदास।।
वह गीत तू जीवन का,
जिसे सबने दिल से गाना चाहा,
वह व्यक्तित्व तू कायनात का,
जिसे सबने सच्चे दिल से सराहा,
वह हर्ष तू किताब का,
जिसे सबने दिल से पढ़ना चाहा,
वह एहसास तू जीवन का,
जिसे सबने दिल से जीना चाहा,
वह प्रेम तू भावों का,
जिसे सबने अपनाना चाहा,
और परिचय क्या दूं तेरा??
तू थी जैसे तन में होती है श्वास।।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
भोर भी है उदास उदास।।
खोजा करते हैं अक्सर तुझे,
अब बेजान सी इन तस्वीरों में,
मिल जाए फिर तू जिंदगी के मेले में, नहीं लिखा अब तकदीरों में।।
पर दिल में खिंची है जो तस्वीर तेरी, वह सदा रहेगी दिल के ही पास।।
कुछ लोग जाकर भी कहीं नहीं जाते, सदा जीवित रहता है उनके होने का एहसास।
तू ही तो वह मधुर एहसास है,
तू है जैसे सुमन में सुवास।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
भोर भी है उदास उदास।।
कुछ लोगों को ईश्वर बेहद ही फुर्सत में बनाता है,
पर जिंदगी उन्हें थोड़ी लंबी देना भूल जाता है।।
जिंदगी छोटी बेशक रही तेरी,
पर काम कर गई बड़े-बड़े तू,
अधरों पर रही मुस्कान सदा तेरे,
हुई नहीं कभी तू लाडो उदास।।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
भोर भी है उदास उदास।।
दोपहर थकी,रात है सोई सोई सी,
क्योंकि तू नहीं अब मेरे पास।।
यादों की किरचे,
जेहन में चुभी सी जाती हैं।
ओ मेरी सबसे छोटी मां जाई!
सच मे तूं बड़ी याद आती है।।
यादों में तू सदा करेगी बसेरा,
फर्श से अर्श तक का सफर करके सतत करती रही विकास।।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
भोर भी है उदास उदास।।
सोच,कर्म,परिणाम की त्रिवेणी बहाने वाली निभाया तूने हर उम्दा किरदार।
तेरे कार्य क्षेत्र का दायरा था अति विविध विहंगम संसार।।
जगह पर नहीं, दिलों पर राज किया तूने,
हिवडे में उमड़ा बस प्यार ही प्यार।।
ओ प्रेम सुता! तू पाठ प्रेम का सबको ही पढ़ा गई,
सच में ओ मेरी मां जाई,
तू जाने क्या क्या सिखा गई।।
तू प्रेरणा स्त्रोत रहेगी सदा,
धरा पर जन्मी पर छू लिया आकाश।।
हर सांझ है बांझ तुझ बिन,
भोर भी है उदास उदास।।
स्नेह प्रेमचंद
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