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मौन मुखर((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जब धड़कन धड़कन संग 
बतियाती है,
हर शब्दावली अर्थहीन हो जाती है।
फिर मौन मुखर हो जाता है,
बिन बोले ही,
 सब कुछ समझ में आता है।।

नयन पढ़ लेते हैं भाषा नयनों की,
ये इतना गहरा नाता है।।
अल्फाज सदा ही लिख पाए
 भावों को,ज़रूरी तो नहीं,
हर अहसास अभिव्यक्ति की 
चौखट तो नहीं खटखटाता है।।

थोड़ा नहीं,बाज़ औकात,
बहुत कुछ मन का मन में ही रह जाता है।।
हर नाता किसी नाम की मोहर का मोहताज नहीं होता,
हौले हौले ये समझ में आता है।।

फिर तुझ में तो बहन,बेटी,सखी,सलाहकार,
राजदार जाने क्या क्या अक्स नजर आता है।
विशेष ही न जब रहे शेष????
फिर जिंदगी में एक प्रश्नचिन्ह सा लग जाता है।

शो मस्ट गो ऑन, मूव ऑन सुन सुन कर मन अकुलाता है।।
सागर सी गहरी, अनंत गगन सी ऊंची सोच की,धरा से धीरज वाली,
धड़धड़ाती ट्रेन से तेरे वजूद के आगे,
मेरा व्यक्तित्व थरथराते पुल सा बन जाता है।।

तेरे होने के अहसास से मन रहता था प्रफुल्लित सा,
तेरे जाने के विचार से दिल डूबा डूबा जाता है।।
तूं जा कर भी कहीं नहीं गई,
हमारी सोच में रहेगा सदा बसेरा तेरा,
अधिक तो नहीं,मुझे इतना तो समझ में आता है।।

इजहार ए प्रेम के मामले में तुझ सी धनी नहीं मैं,
 ओ मेरी मां जाई।
पर अहसास ए प्रेम में तो एक समान ही नाता है।।

तुझसा नहीं मिलता जिंदगी के सफर में कोई बार बार,
ये सौभाग्य है हमारा तूं मिली बहन रूप में हमे,
मुझे तो यही समझ में आता है।।

मिले शांति तेरी दिव्य दिवंगत आत्मा को,
मन लम्हा दर लम्हा यही दोहराता है।।
      स्नेह प्रेमचंद

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