*मशक्कत* करनी पड़ती है किसी भी मारसिम को मजबूत बनाने में।
*दौर ए कश्मकश*में गुजर न जाए जिंदगी,
बागबान लगा रहता है
एक तूं ही थी ऐसी जो सहजता से किसी भी नाते की पल भर में अपना बना लेती थी।
*दौर ए कश्मकश* में भी मुस्कान अंधेरों पर अपने सजा लेती थी।।
अंदाज ए गुफ्तगू भी सच में तेरा ओ मां जाई! था बहुत ही शानदार।
धड़धड़ाती ट्रेन सा वजूद तेरा,सच में था बहुत ही जानदार।।
स्नेह प्रेमचंद
Comments
Post a Comment