जब रात्रि का अंतिम पहर भोर में तबदील होता है,अरुणिम ऊषा अपनी लालिमा चहुं ओर बिखेर देती है,दिनकर की आभा से जैसे कोई शरमाई हुई सी,नई नवेली सी दुल्हन की भांति भोर, अपने आगोश में ढेरों उम्मीदें आशाएं समाए हुए होती है,
कतारबद्ध से परिंदे भोजन की खोज में अनंत गगन की उड़ान भरते हैं,चहुं ओर चेतना का स्पंदन होने लगता है,जिजीविषा अंगड़ाई लेती है,कर्म चहचहाने लगते हैं,ऐसे ही किसी भी नारी के जीवन में जब पति रूप में कोई पुरुष आता है,उसकी सोच में परिवर्तन आना लाजमी है।अधिकार संग जिम्मेदारी भी आती हैं।एक नए सफर का आगाज होने लगता है।इस नए सफर पर दोनो हमराही निकल पड़ते हैं,अनखोजी,अनदेखी राहों पर साथ साथ सफर करने के लिए।उनके पास प्रेम और विश्वास का टिकट होता है।इस सफर में मात पिता का साथ,सानिध्य,मार्गदर्शन घने
बरगद की ठंडी छाया सा अनमोल खजाने स्वरूप मिलता है।हमसफर संग जिंदगी की टेडी medhi सड़क के अनेक मार्गवरोधक बिन किसी खास बड़ी बाधा के पार हो जाते हैं।
*मैं हूं न*वाक्य छोटा सा पर बहुत गहरा जीवन को आसान बना देता है।।
समय संग इनके प्रेमचामन में प्रेम पुष्प के अंकुर प्रस्फुटित हो जाते हैं,ये बाल पुष्प जीवन की बगिया महका देते हैं।फिर उनकी परवरिश की मधुर जिम्मेदारी दोनो संग संग उठाते हुए जीवन पथ पर अग्रसर रहते हैं,उन्हे शिक्षा,संस्कार देने की पूरी कोशिश करते हुए रेल की दो पटडियों की मानिंद संग संग चलते हैं।दोनो की प्राथमिकताओं की फेरहिस्त में परिवार ही सर्वोपरि रहता है।जीवन की आपाधापी जैसे बच्चों की पढ़ाई,उनकी शादी सब संग संग,फिर पर निकलते ही परिंदे उड़ जाते हैं,
फिर जिंदगी के एक मोड़ पर दोनो अकेले,मगर एक दूसरे के साथ,एक दूजे का मनोबल बढ़ाते रहते हैं,कब जीवन की सांझ आ जाती है, पता ही नहीं चलता। बाज औकात मन में एक आशंका,एक डर भी घर कर लेता है, यदि एक को कुछ हो गया तो??? उस जीवन को जीने की कल्पना भी रूह को रेजा रेजा कर देती है, माना खून का तो नहीं है पो यह नाता परंतु प्रेम समर्पण और विश्वास ही इसकी नींव है। यही करवा चौथ के पर्व का सार है। ढाई अक्षर प्रेम के पूरे जीवन का श्रृंगार करने में सक्षम हैं।।
*प्रेम जब जिंदगी की मांग में भर देता है सिंदूर
सब कष्ट और बाधाएं अपने आप ही हो जाती हैं दूर।।
स्नेह प्रेमचंद
Comments
Post a Comment