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Showing posts from November, 2021

दुआओं से बेहतर

हर पल

पूरा संसार

कभी ऋण मुक्त नहीं ही सकते((विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा))

aaz sakhi

मां जैसा

आखिर कैसे

हमारे मां बाप

कांकरी

बहुत मुश्किल से

फक्र की जगह

कैसे कहें हम

बाज़ औकात

बाज़ औकात मौत ,जिंदगी को कर देती है आसान। जीते जी ही तो जीवन में छिड़ा रहता है घमासान।। जाने वाले तो छोड़ यादों का कारवां, हौले से चले जाते हैं। पीछे रह जाते हैं जो बहुत ही अपने, ये अतीत की कतरनें बटोरे जाते हैं।। खुश ग्वार पल हैं पास जिसके,सच में है वही धनवान। बाज़ औकात मौत जिंदगी को कर देती है आसान।।         स्नेह प्रेमचंद

प्रेम मोह से

सांझ सकारे

करवट समय की

बहुत प्यारे

बुआ भतीजी

हर खुशी मिले तुझे जहां की

अतीत की दस्तक

साज

वो चली गई अचानक

ऐसा था आपका न होना

चलो न पापा(बिटिया की गुजारिश पापा से) विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा

चलो ना पापा,आज मां को मायके की फील दिलाते हैं। चलो ना पापा,आज आपके लिए चाय,और हमारे लिए बोर्नविटा का दूध ख़ुद ही बनाते हैं।। चलो न पापा,आज मां को बेड टी हम पिलाते हैं।। चलो न पापा,आज मैं और आप ही हम सबके लिए नाश्ता बनाते हैं। आज मां को सोने देते हैं देर तक,नानी जैसे, मां को नहीं उठाते हैं।। चलो ना पापा,आज बाई से हम ही झाड़ू पोंछा करवाते हैं।। चलो न पापा,आज सब्जी मंडी से जाकर हम ही सब्जी ले कर आते हैं। चलो न पापा,आज हम ही दूध वाले भाई से दूध लाते हैं।। चलो न पापा,आज दादा दादी की जरूरतें हम ही पूरी करवाते हैं। चलो न पापा, मां को मायके की फील दिलाते हैं। चलो न पापा, मां की जिंदगी में कुछ रंग ले आते हैं। चलो न पापा, सूखे मुरझाए मधुबन में फिर से खुशबू ले आते हैं। चलो न पापा,मां की जिंदगी के साग में,सुकून का धनिया बुरकाते हैं।। चलो न पापा,आज मां के लिए कुछ भी उपहार ले आते हैं। चलो न पापा, मां को मायके की फील कराते हैं। उनके मां बाप नहीं रहे तो ऐसा नहीं उन्हे बस निभानी हैं जिम्मेदारियां ही,उन्हे भी उनके अधिकार दिलाते हैं।। चलो न पापा,अंधेरे में उजियारे का दीप जलाते हैं। बुझ सा गया...

जब भी अपने खोले अधर

सूना सा

एक किसी के न होने से सूना लगता है संसार,वो एक कोई और नही,होता है वो माँ का प्यार,जीवन के साज की सबसे मधुर सरगम है माँ,तपते मरुधर में सबसे निर्मल ठंडी छाँव है माँ,सहजता है माँ,आशा है माँ,मिलन है माँ,संसार रूपी कीचड़ में खिला सबसे सुंदर कमल है माँ,सब रिश्ते हैं फीके,खोखले ,माँ के बाद गहता जाता है अहसास,कितने खुशकिस्मत होते हैं वो,होती है माँ जिनके पास,बेशक सोच कर देख लो,माँ के सिवाय कोई रिश्ता निस्वार्थ नही मिलेगा,खुद तो साथ नही रह पाते प्रभु,पर उनके रूप में माँ का गुलाब हर आंगन में खिलेगा

सांझ से जब भी

एक धरा है

सबसे अनमोल अहसास प्रेम है

खुद की न खुद से मुलाकात हुई

जीत उसी की होती है

प्रेम सबसे अनमोल अहसास

वो ऋतु है मां

जरा सोचिए((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कोई खास रूठ जाए तो

इतनी शक्ति

असली स्वरूप

वो हमसे बात नहीं करते

कटाक्ष

खामोशी

कई कर्मों को

सबको नहीं आता

किरदार