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इतना तो बनता ही है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जन्मदिन पर हम याद करें जन्म देने वाले मात पिता को,इतना तो बनता ही है,दें उनको हम सच्चे दिल से श्रद्धांजलि, इतना तो बनता ही है,उनकी कर्मठता को उतारें अपने जीवन में,इतना तो बनता ही है,उनके सोचे सपनो को साकार  करें हम,इतना तो बनता ही है,वो जो विषम हालातों में भी बहुत कुछ कर गए हमारे लिए,ये एहसास जगाये रखें,इतना तो बनता ही है,आज नमन करें हम उनको सच्चे दिल से,इतना तो बनता ही है,हमारे सपने पूरे करने के लिए जो अपनी जरूरतें दबा गए,उन्हें आज सबसे पहले याद कर करें नमन और वंदन,इतना तो बनता ही है। हमे हम से अधिक जानने वाले बेशक एक दिन इस जग को छोड़ चले जाते हैं,पर जेहन से वे कभी न जाएं,इतना तो बनता ही है।।मात पिता सच में धरा पर ईश्वर का पर्याय हैं, ऊंगली पकड़ चलना सिखाने वालों के कांपते हाथ थामे हम जीवन की सांझ में सहजता से,बिन भाल पर शिकन लाए,इतना तो बनता ही है।।*का वर्षा जब कृषि सुखाने* समय निकलने के बाद अहसास होने से क्या फायदा???
एहसासों की भी उम्र होती है,इस बात का अहसास हो हमे,इतना तो बनता ही है।।आज जन्मदिन पर उन्हें दिल से शुक्रिया करें,नमन और वंदन करें,इतना तो बनता है,और इस कर्तव्य कर्म को निभाने की हमारी जिम्मेदारी भी है।।
        स्नेह प्रेमचंद
  

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

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