जब महलों संग झोंपड़ी में भी हों उजियारे,समझो दीवाली आ गई।
जब शौक न सही मगर ज़रूरतें सबकी होने लगें पूरी,
समझो दीवाली आ गई।।
जब हृदय में करुणा का अंकुर प्रस्फुटित होने लगे,
समझो दीवाली आ गई।।
जब समझ जाएंगे हम
पटाखे न जला कर प्रदूषण होता है कम,उन्हीं पैसों से किसी अभावग्रस्त की, कर जरूरतें पूरी गर मन को मिलेगी शांति,समझो दीवाली आ गई।।
*जब प्रेम मोह पर भारी पड़ने लगे,
*जब अहम से वयम की ओर चले,
*जब स्वार्थ से परमार्थ की राह चले,
*जब सबल निर्बल का हाथ थाम ले,
*जब शिक्षाभाल पर संस्कार तिलक लग जाए,
*जब स्व से सर्वे का शंखनाद बजने लगे,
*जब किसी भी आयोजन का प्रयोजन स्वांत सुखाय न होकर परहित के लिए हो,
*जब जगकल्यान और जनकल्याण की भावना सर्वोपरि हो,
*जब आत्ममंथन,आत्मसुधार की राह चले,
*जब समझ आने लगे कि प्रेम बिन सम्मान नहीं होता,
*जब मात पिता इस धरा पर भगवान समान नजर आने लगे,
*जब पीर पराई समझ आने लगे,
*जब अहिंसा परमो धर्म हमारा
मन को भाने लगे,
*जब कला मकसद की चौखट खटखटाने लगे,
*जब बच्चे कांपते हाथ और लड़खड़ाते कदमों का सहारा बनने लगे,
*जब राग,ईर्ष्या,द्वेष,अहंकार का शमन हो जाए,
*जब प्रेम ही है आधार हर रिश्ते का समझ आने लगे,
*जब सांझा चूल्हा घर घर जलने लगे,
*जब कला संगीत नृत्य की त्रिवेणी कल कल बहने लगे,
*जब संवेदना का अंकुर हर हृदय में उपजने लगे,
*जब ज्ञान के उजियारे से सबके ज्ञान चक्षु खुल जाएं,
*जब मलिन मनों से सब धुंध कुहासे हट जाएं,
*जब चित से समस्त विकारों का शमन हो जाए,
*जब खुशी लेने में नहीं,देने में महसूस होने लगे,
*जब हम किसी के लबों पर मुस्कान का कारण बने,
*जब हमे दुआओं में शुमार होना आ जाए,
*जब बेटा बेटी एक समान कथनी में नहीं,करनी में हो जाएं,
*जब कोख में ही किसी कन्या भ्रूण की हत्या न हो,
*जब किसी भी वृद्धाश्रम की दरकार न हो,
*जब हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले,
*जब रिश्ते स्नेह सुमन से महकने लगें,
*जब नारी तन के भूगोल के बजाय उसके मन के विज्ञान को समझा जाए,
*जब सबके तन पर कपड़ा,सबके सिर पर छत,और सबको रोटी मयस्सर हो,
*जब भष्टाचार मुक्त समाज बन जाए,
*जब गण और तंत्र एक दूसरे की ताकत बने,कमजोरी नहीं,
*जब मधुशालाओं में हाला के प्याले न छलके,सब सात्विक आहार करें,
*जब बहु बेटी एक समान नजर आने लगे,
*जब सब निर्भय सब सुरक्षित हों,
फिर से राम राज्य आ जाए,
समझो सही मायने में दीवाली आ गई।।
स्नेह प्रेमचंद
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