Skip to main content

ज्योत्सना भी तूं,आरुषि भी तूं

ज्योत्सना भी तूं,आरुषि भी तूं,
मां तूं ही चांद पूनम का,
तूं ही  जिंदगी का आफताब।
सौ बात की एक बात है,
मां मैं हर्फ,तूं पूरी किताब।।

क्या लिखूं तेरे बारे में मां,
तूने तो मुझे ही लिख डाला।
सोच सोच होती है हैरानी,
कैसे तूने मुझे था पाला???
सीमित उपलब्ध संसाधनों का भी
तूने कभी नहीं दिया हवाला।
रत्ती भर भी मिल जाए तेरे वजूद का गर मां,
समझूंगी,पी लिया अमृत प्याला।।

जिंदगी की किताब के हर पृष्ठ पर नजर तूं ही तूं आती है।
क्या करूं??? समा गई है जेहन में ऐसी,जैसे एक सांस आती है,एक सांस जाती है।।

मां आज जन्मदिन है मेरा और मेरे
जेहन मे आज अक्स तेरा और मुखर हो जाता है।
मेरा तो रोल मॉडल है मां तूं,
जिंदगी के हर मोड़ पर जिक्र तेरा,
जैसे मुझे सहला जाता है।।
अक्षर ज्ञान भले ही न रहा हो तुझे,
पर जिंदगी का तुझ से अधिक हो किसी को अनुभव,
मुझे तो नजर नहीं ऐसा आता है।।

भावों से है दोस्ती मेरी मां,
अल्फाजों से नहीं,वरना बता देती,
कैसा चलती ट्रेन से धड़धडाता वजूद था तेरा,और ऐसे वजूद के आगे कैसे थरथराते  से पुल सा वजूद था मेरा।।

जन्मदिन हो और जन्म देने वाली को नमन न किया जाए,ये तो किसी हाल में न होगा मां गवारा।
सौ बात की एक बात है, मां तेरा व्यक्तित्व सच में बड़ा न्यारा।।

मां किस किस बात के लिए तेरी होऊं मैं शुक्रगुजार।
इसकी फेरहिस्त तो खत्म ही नहीं होगी,तूं सदा यादों में रहेगी शुमार।।
मां से बड़ा कोई मित्र नहीं,
मां से बड़ा कोई गुरु नहीं,
मां से बड़ा कोई राजदार नहीं,
मां से बड़ा कोई हितेषी नहीं,
मां से बड़ा कोई शुभ चिंतक नहीं,
मां से बड़ा सच में खुदा भी नहीं,
ईश्वर भी जिसके सजदे में सिर झुकाते हैं।
वे सिर्फ और सिर्फ होते मां बच्चों के नाते हैं।।

मां सुना था,लोग कहते हैं,
वक्त के साथ धीरे धीरे हम भूल जाते हैं।
तेरे बारे में ये फलसफे मुझे तो बिलकुल समझ नहीं आते हैं।।
तूं तो हिना सी,और भी ज्यादा गहराती है।
जन्मदिन के दिन ही नहीं,
मुझे तो मां हर पहर,
लम्हा दर लम्हा तूं याद बहुत ही आती है।।
प्रेरणा है तूं मां,
मां, तूं ही आदि शक्ति है
तूं ही भाव,तूं ही इजहार,
तूं ही भगति है
कोई राघव को पूजे,
कोई पूजे रहीम को,
मेरे मन मंदिर में तो मां सच में सबसे प्यारी मूरत,तेरी ही सूरत है।।
आज भी मांगती हूं तुझ से ही मां वही पहले सा प्रेम भरा आशीर्वाद।
धन्य हुई मैं,जो जन्मी तेरी कोख से,
हुआ जीवन मेरा आबाद।।
शब्द ही नहीं बने आज तलक कोई,
जिनसे मां का किया जा सके धन्यवाद।।
    स्नेह प्रेमचंद





Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...

बुआ भतीजी