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चलो न पापा(बिटिया की गुजारिश पापा से) विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा

चलो ना पापा,आज मां को मायके की फील दिलाते हैं।
चलो ना पापा,आज आपके लिए चाय,और हमारे लिए बोर्नविटा का दूध ख़ुद ही बनाते हैं।।
चलो न पापा,आज मां को बेड टी हम पिलाते हैं।।
चलो न पापा,आज मैं और आप ही हम सबके लिए नाश्ता बनाते हैं।
आज मां को सोने देते हैं देर तक,नानी जैसे, मां को नहीं उठाते हैं।।
चलो ना पापा,आज बाई से हम ही झाड़ू पोंछा करवाते हैं।।
चलो न पापा,आज सब्जी मंडी से जाकर हम ही सब्जी ले कर आते हैं।
चलो न पापा,आज हम ही दूध वाले भाई से दूध लाते हैं।।
चलो न पापा,आज दादा दादी की जरूरतें हम ही पूरी करवाते हैं।
चलो न पापा, मां को मायके की फील दिलाते हैं।
चलो न पापा, मां की जिंदगी में कुछ रंग ले आते हैं।
चलो न पापा,
सूखे मुरझाए मधुबन में
फिर से खुशबू ले आते हैं।
चलो न पापा,मां की जिंदगी के साग में,सुकून का धनिया बुरकाते हैं।।
चलो न पापा,आज मां के लिए कुछ भी उपहार ले आते हैं।
चलो न पापा, मां को मायके की फील कराते हैं।
उनके मां बाप नहीं रहे तो ऐसा नहीं उन्हे बस निभानी हैं जिम्मेदारियां ही,उन्हे भी उनके अधिकार दिलाते हैं।।
चलो न पापा,अंधेरे में उजियारे का दीप जलाते हैं।
बुझ सा गया है जो चेहरा,आज उसके लबों पर मधुर मुस्कान खिलाते हैं।।
चलो न पापा,मां की पसंद के राजमा चावल बनाते हैं।
वो कुछ नहीं कहती,बस करती जाती है,हम भी बिन कहे आज उसके मन की समझ जाते हैं।
चलो न पापा, मां को मायके की फील कराते हैं।।
चलो न पापा,आज बचपन की चौखट पर दस्तक दे जाते हैं।
     स्नेह प्रेमचंद

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