Skip to main content

हौले हौले((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हौले हौले शनै शनै बीत रहे हैं सालोंसाल,
हर लम्हा है अनमोल,हो न जीवन मे कोई मलाल।।
आदित्य सा तूँ चमकना,विवेक को अपने कभी न खोना,
देख बेरुखी इस जग की,लाल मेरे तूँ कभी न रोना।।
फौलादी रखना अपने इरादे,करना पूरे सारे वायदे,प्रतिभा तेरी बड़ी कमाल,
मैं दिल तो तूँ है धड़कन,मैं उत्तर तो तूँ सवाल।।
आज लेखनी लिखती जाना,देख तूँ शब्दों को भावों से मिलाना,
माँ की ममता होती है इस जग में सबसे अनमोल खज़ाना,
बच्चे संग जन्म लेते है माँ का अनुराग और ज़िम्मेदारी,
तूँ उंगली जकड़ कर चलना सीखा था मेरी,कल मुझे थामने की आएगी बारी।।
तूँ नित सफलता के सोपानों पर मेरे लाल तूँ चढ़ते जाना,
कभी कभी जीवनपथ बन जाता है अग्निपथ,
पर उनसे न तूँ कभी घबराना।।
सौ बात की एक बात है,
तूं जीवन का सबसे मधुर तराना।।
हर रंग जीवन का तुझ से,
ओ रंगरेज मेरे,चित रंगते जाना।।
जीवन सीधी सड़क नहीं,
अनेक आएंगे मार्ग अवरोधक,
पर उनसे तूं कभी न घबराना।।
शो मस्ट गो ऑन,
गिर कर उठना,उठ कर चलना,
डगर जिंदगी की आसान बनाना।।
मेरी दुआओं का सिलसिला तो
ताउम्र रहेगा लाडले जारी।
पर जिंदगी के पाठ पढ़ने की
अब आ गई है तेरी बारी।।
शहनाई की मधुर सी धुन है तूं
है तूं तबले की सुरीली थाप।
केसर यूं ही नहीं उगा करते,
खरपतवार उग जाते हैं अपने आप।।
तूं केसर सा महकना,
कभी न बहकना,
व्यक्तित्व बने तेरा बेमिसाल।
हौले हौले शनै शनै बीत रहे हैं सालों साल।।
 कल खेल में हम हों न हों,
दुआओं में खोज लेना मुझे लाल।।
हर खुशी हो मयस्सर तुझे जहां की,
सच में दुआ मेरी बड़ी कमाल।।
मुबारक मुबारक जन्मदिन मुबारक,
हो लंबी उम्र तेरी,जीना सालों साल।।
      स्नेह प्रेमचंद

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी