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आशीषों की बरखा कर देना(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आशीषों की बरखा करना,
आज मेरे ओ परवरदिगार।
आज जन्मदिन है जिसका,
आए उसके जीवन में सदा बहार।।

प्रकाशपुंज हो लाल मेरे जीवन के,
हैं तुझसे ही ज़िन्दगी के उजियारे।
कांटा भी न कभी कोई चुभे तुझे,
तेरी माँ करे प्रार्थना, यही साँझ सकारे।।

कुदरत ने आज ही के रोज़ तो दिया था मुझे अनमोल उपहार।
आशीषों की बरखा करना,
आज मेरे ओे परवरदिगार।।

मात पिता के जीवन में सब कुछ ही तो होती है औलाद।
तूँ बनना संस्कारी,न बनना विकारी,हों तेरे इरादे जैसे फौलाद।।

जीवन मे देखना सपने ऊंचे,
भरना सदा ऊंची ही उड़ान।
करुणा की धारा बहे सदा हृदय में तेरे,
मधुर शब्दों का वाणी पहने परिधान।।

कभी किसी का हिया न दुखाना,
गाना सदा ही प्रेम तराना,
सत्य,अहिंसा को जीवन मे लेना धार,
सात्विक भोजन करना,रखना हिवड़े में सदा ही शुद्धविचार।।

आशीषों की बरखा करना,
आज मेरे ओ परवरदिगार,
व्यक्तित्व में इसके तेज लाना,ओजस्विता का लगाना बघार।।

प्रेम ही हो इसके जीवन का आधार,
करे करुणा ,विनम्रता का सच्चा श्रृंगार।
मधुर हो वाणी,सत्कर्मो की जीवन मे बजे शहनाई,
आएं गर समस्या,तो समझे ये समाधान की गहराई,
सर्वे भवन्तु सुखिनः के भाव की,इसका हृदय करे तराई,
अहम से वयम का बजाए सदा ही ये शंखनाद,
सवः से सर्वे की चेतना से चित्त करे फरियाद,
कुछ ऐसा बना देना इसको,
कर लेना बिनती स्वीकार,
आशीषों की बरखा कर देना,
आज मेरे ओ परवरदिगार।।
बरस पर बरस बीत रहे हैं,
नित नए अनुभव तेरे हिवड़े को सींच रहे हैं,
फलते जाना फूलते जाना,
हो न किसी से तेरी तकरार।।
और अधिक क्या कहूँ मेरे मुन्ना,
प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।
फिसल रही है ज़िन्दगी,
खिसक रहे हैं लम्हे,
सोच के भी भिन्न भिन्न प्रकार।।
आशीषों की बरखा केर देना,
ओ मेरे ईश्वर,ओ मेरे परवरदिगार।।
विविध आकर्षण हैं इस जग में,
तुझे अपनी ओर रिझाएंगे,
क्या है अच्छा,क्या बुरा है,बस संस्कार ही बताएंगे।।
जीवन की इस भूलभुलैया में,
सही राह को तेरी मिले आकार।
जीवन के इस अग्निपथ पर हो सफलता की नौका तैयार।।
मावस के बाद आती है पूनम,
निशा के बाद आती है भोर,
तमस है तो हैं उजियारे भी,
देखना लाडले चारों ओर।।
आदित्य से दमकना, जुगनु सा चमकना,अनन्त सागर सा बनना विशाल।
देख इतना है विश्वास मुझे संगीतजगत में करेगा कमाल।।
प्यार भी है,अनुराग भी है,
है आज दुआओं का उपहार।
आशीषों की बरखा कर देना,
ओ मेरे ईश्वर,ओ मेरे परवरदिगार।।
मेरी मां जाई की दिए इस तबले
पर सदा बजाना मधुर झनकार।
अनमोल सा हो गया है ये तबला अब,निभाना अपना सही किरदार।।
एक यही है गुजारिश मेरी,
आज लाल कर लेना स्वीकार।
कभी किसी की बेबसी न हो,
हमारी आजीविका का आधार।।
प्रेम और करुणा का तेरे जीवन
में हो सदा संचार।।
यही दुआ देती हूं तुझे,
कर लेना इसे स्वीकार।।
     स्नेह प्रेमचंद

                     माँ

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