पूछन लागी जब मेरी सखियां,
बहना घर से तूं क्या लाई है???
मैं झट से बोली एक लंबी फेरहिस्त है
जो कुछ ऐसे मैंने उन्हें सुनाई है।।
मधुर स्मृतियों का एक लाई हूं कारवां,
हर स्मृति ने जैसे कोई मधुर सी लोरी गाई है।
सहजता की बांध पोटली मैने दिल के बैग में घुसाई है।
बिखरे बिखरे से मन मयूर पर मोरनी के मधुर सफर की मोहर लगाई है।
सच पूछो तो इस बार मैंने
बहनदूज मनाई है।।
प्रेम नौका में कर विहार
जल झील में,
मुद्दत से सोई चेतना जगाई है।।
रिस्ते घावों पर जैसे कोई
नरम सी मरहम लगाई है।
प्रेम सुता हूं,मिली प्रेम सुता से,
दिल में प्रेम की अखंड ज्योत जलाई है।।
स्नेह प्रेमचंद
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