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बरस पर बरस यूं ही बीते जाते हैं ((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बरस पर बरस यूँ ही बीते जाते हैं।
हम हर जन्मदिवस पर खुशियों का जश्न मनाते हैं।

परिवर्तशील, ये समय की धारा,
हम संग इसके बहते जाते हैं।

दिन के पहर नही जब एक जैसे,
फिर परिवर्तन से क्यों घबराते है??

नियत समय के लिए बन्धु,
हम अपना अपना किरदार निभाते हैं ।
फिर छोड़ झमेला दुनियादारी का,
विदा यहाँ से हो जाते हैं।

सब समझते,सब जानते हुए भी
क्या हम अपना रोल सही निभाते हैं??, 

जीवन का मेला चार दिनों का
क्यों प्रेम से सबको अपना मीत नही बनाते है।

शत शत नमन मात पिता को,
जो हमको इस जग में लाते हैं।

हमारे जन्म से अपनी मृत्यु तक,
वो दिल मे हमे बसाते हैं।।।।

दे देना मुझे अपनी दुआएँ
होगा यही सबसे बड़ा उपहार।

प्रेम चमन की ये डाली,
करे बिनती आपसे बारम्बार।।।

जिंदगी के इस मेले में कुछ नए मिलते हैं,कुछ मां जाई से खास बिछड़ भी जाते हैं।।

सबके जीवन ने सबकी जगह है अलग अलग,ये बिछौड़े ही हमे समझाते हैं।
उनके बिना जिंदगी जिंदगी तो नहीं,
हम फिर भी जीए जाते हैं।।
उनके बिना जिंदगी से शिकवा भी है,
गिला भी है,शिकायत भी है,
सहज होने की कोशिश में हम असहज से होते चले जाते हैं।।
न हंसते हैं खुल कर, न ही खुल कर रो पाते हैं।।

फिर एक दिन जिंदगी के इस रंगमंच से,कभी न वापस आने के लिए दूर बहुत दूर चले जाते हैं।
बहुत महीन हैं ये मोह मोह के धागे,
जितना सुलझाओ,उतना ही उलझे चले जाते हैं।।

बरस पर बरस यूं ही बीते जाते हैं
हम हर जन्मदिन पर,यूं हीं खुशियां मनाते हैं।।
       स्नेह प्रेमचंद

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