एक चबका सा लगा रहता है जैसे,
सब कुछ लूट गया हो कोई लुटेरा।
सब जानते हैं सब क्षणभंगुर है इस जग में, न कुछ तेरा, न कुछ मेरा।।
चस चस सा हो रहा है तन मन
लगी जिया में जैसे उचाटी।
सब पता है,सब जानते हैं,
एक दिन माटी में मिल जाएगी माटी।।
मानस कुछ ज्यादा ही लंबी हो गई
इस बार,आने का नाम ही नहीं लेता
सवेरा।
एक चबका सा लगा रहता है जैसे,
सब कुछ लूट गया हो कोई लुटेरा।।
रात भर बैचेनी लेती रही करवटें,
इस बात की गवाह थी चादर की सलवटें।।
एक कोहरे की पसर गई है बड़ी सी चादर।
सच में स्नेह भी रहा तुझ से,और रहा मन में घणा सा आदर।
आसंग सी ही चली गई जैसे,
उजियारे हो हर ले गया जैसे अंधेरा।
सब जानते हैं क्षणभंगुर है इस जग में,
न कुछ तेरा, न कुछ मेरा।।
स्नेह प्रेमचंद
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