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नहीं मां से बेहतर कोई सौगात((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मेरी नजर में मां से बेहतर नहीं धरा पर  ईश्वर की कोई और सौगात।
मां भोर,दोपहर,सांझ जीवन की,
नहीं, मां की ममता से सुंदर कोई भी जज़्बात।।

असीमित संभावनाओं का असीम अनंत सा सागर,
सच में कायनात धन्य हो जाती है मां को पाकर।।
जब सब पीछे हट जाते हैं, 
तब मां बढ़ कर आगे आ जाती है,
चाहे कैसे भी हों हालात।
मेरी नजर में तो मां से बेहतर,
नहीं धरा पर ईश्वर की कोई भी सौगात।।

रीत है मां, रिवाज है मां,
शिक्षा है मां, संस्कार है  मां,
सौ बात की एक बात है,
 हर रिश्ते का आधार है मां।।
जीवन के सूखे मरुधर में 
मां शीतल सी बरसात।
जीवन धन्य सा हो जाता है,
हो जाए जो मां से मुलाकात।।
मेरी नजर में तो मां से बेहतर,
नहीं धरा पर ईश्वर की कोई भी सौगात।।

हमारी हर उपलब्धि, हर असफलता में संग संग रहती है,
जाने क्या क्या करती रहती है हमारे लिए,पर लबों से कुछ नहीं कहती है।
हमारे शौक पूरे करने के लिए अपने सपने दबाती है।
जाने कितने ही वाद विवादों पर,समझौते का तिलक लगाती है।
जीवन के हमारे अग्निपथ को,
अपनी ममता से शीतल बनाती है।
फिर एक दिन अचानक ही जिंदगी के रंगमंच से सदा के लिए गायब हो जाती है।
तन से बेशक चली जाए,
पर जेहन में सदा के लिए बस जाती है।
सच में मां है तो सुंदर है पूरी की पूरी कायनात।।
मां वात्सल्य का कल कल बहता हुआ झरना,
मां सच में सबसे सुंदर जज़्बात।।
मां भोर,दोपहर,सांझ,रात जीवन की, मां से सुंदर तो होते ही नहीं किसी के भी खयालात।।

हमे हमसे बेहतर जानती है मां,
जीवन की प्रथम शिक्षक है मां,
सबसे खूबसूरत अहसास है मां,
जिंदगी का परिचय अनुभूतियों से
करवाती है मां,
अपनी जान पर खेल कर,
 हमे इस जग में लाती है मां,
मां बन कर चलता है पता,
मां की होती है निराली हर बात।
मुझे तो इस धरा पर मां ही आती है नज़र ईश्वर की सबसे सुंदर सौगात।।
सच में मां के धड़धड़ाते वजूद के आगे थरथराते पुल सा होता है वजूद हमारा,उसके आगे हमारी कुछ नहीं होती औकात।।

मैने भगवान को तो नहीं देखा,
पर जब जब देखा मां की ओर,
नजर आई कोई दैविक शक्ति साक्षात।
मां सहजता और धीरज का पर्याय,
नहीं मां से सुंदर कोई भी जज़्बात।।
        स्नेह प्रेमचंद
        हिसार हरियाणा


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