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फूल बना लो जिंदगी((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

फूल बना लो जिंदगी जो सदा महकते है, और महकाते हैं 
 फूल बना लो जिंदगी,
 जो कांटों को भी अपना साथी बनाते हैं।।
 पर उनसे अप्रभावित हुए जिंदगी अपनी जिए जाते हैं।
 फूल बना लो जिंदगी,
 जो सदा महकते हैं और औरों को भी महकाते हैं।।

 सुख दुख जीवन के दो साथी,
साथ ही चलते जाते हैं।
ऐसे ही फूल भी तो कांटों के संग ताउम्र जीए जाते हैं ।।

जीवन की सच्चाई को प्रतिबिंबित से किए जाते हैं। 
आंधी हो या हो तूफान,
 अपनी महक से सबको महकाते हैं।।
फूल बना लो जिंदगी,
 जो सदा महकते हैं औरों को भी महकाते हैं।।
*जीवन है क्षण भंगुर*आज खिले,
 कल मुरझा जाते हैं।
 किंतु अपने कर्तव्य कर्मों से अपने नयन नहीं चुराते हैं।।
 4 दिन की जिंदगी क्यों सतकर्मों से अपने अस्तित्व को नहीं महकाते हैं।।
 दे जाते हैं यह संदेश फूल हमें,
समय रहते हम जिसे समझ नहीं पाते हैं।।
 कितनी भी हों विषम परिस्थितियां महकने से कभी नहीं घबराते हैं।।
कभी जन्म पर कभी मरण पर
बन माला चढ़ जाते हैं।
 फूल बना लो जिंदगी, खुद भी महकते हैं औरों को भी महकाते हैं।।

जग रूपी कीचड़ के सागर में भी बन जलजात खिल जाते हैं।
सौंदर्य और गुण की सुंदर परिभाषा बन जाते हैं।।
      स्नेह प्रेमचंद

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