नित शब्दों से खेलने वाली मै,निशब्द सी हो गई हूं,
सच तेरे जाने के बाद।
तूं केंद्रबिंदु जीवन का,
आती है लाडो घणी घणी याद।।
जब भी वर्तमान अतीत की चौखट
पर दस्तक देता है।
सबसे पहले ओ मां जाई!नाम तेरा वो लेता है।।
चलचित्र सा चल पड़ता है यादों का काफिला,मौन से होने लगता है संवाद।
तूं केंद्र बिंदु जीवन का,
आती है लाडो घणी घणी सी याद।।
फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाली,मेहनत और जिजीविषा तो तूने
जननी से विरासत रूप में पाई थी।
तूं रुकी नहीं,तूं थकी नहीं,आजमाइश ने सदा ही जीवन में तेरे जगह बनाई थी।।
विषम परिस्थितियों में भी तूने कर्म का सदा बजाया शंखनाद।
तूं केंद्र बिंदु जीवन का,
आती है लाडो घणी घणी सी याद।।
स्नेह प्रेमचंद
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