*खुशी नहीं मिलती बाहर से,
खुशी है भीतर का एहसास*
*कोई तो कुटिया में भी खुश है,
किसी को महल भी नहीं आते रास*
*जब तक जिंदगी के रास्ते समझ आते हैं तब तक जिंदगी का सफर पूरा होने को होता है, शायद विडंबना इसी का नाम है। जिंदगी की इस आपाधापी में कब जीवन पथ अग्निपथ बन जाता है एहसास ही नहीं हो पाता। इसका मुख्य कारण एक नहीं अनेक हैं।हमारा परिवेश, हमारा परिवार, समाज हमारी परवरिश और हमारी प्राथमिकताएं और सबसे महत्वपूर्ण हमसे की जाने वाली अपेक्षाएं।।
सामाजिक और पारिवारिक दबाव कई बार नहीं अक्सर हमे प्रतिस्पर्धा के गहरे कुएं में उतार देता है और वो भी बिन किसी रस्सी के।जग को जानने का दावा करते रहते हैं,पर खुद की खुद से कभी मुलाकात ही नहीं करवाते।कभी अंतर्मन के गलियारों में घूमते ही नहीं,सबसे ज़रूरी बात है,पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती,पर हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में विशेष है, जरूरत इस बात की है कि आत्म निरीक्षण कर,आत्ममंथन किया जाए,अपनी रुचि अभिरुचियों से हमे परिचित होना चाहिए, अपनी विशेषता को अगर हम ही पहचान नहीं पाए तो क्या लाभ,हमारे मात पिता भी इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।उसी दिशा में आगे कदम बढ़ाने चाहिए।यही आत्मसुधार एक दिन पूरे वतन का सुधार कर सकता हैं।
हमारा पैशन ही हमारा प्रोफेशन हो,तो मेरे नजरिए से इससे बेहतर कुछ नहीं होगा, परिणाम भी सकारात्मक होंगे।साहित्य में रुचि रखने वाले को गणित के प्लस माइनस कभी रास नहीं आते।अनेक विकल्पों में से सही चयन जिंदगी में बहुत ज़रूरी है।सच्ची खुशी का निश्चित ही आभास होगा।हकीकत कुछ और ही है,अधिकाधिक धनोपार्जन कर भौतिक सुख सुविधाओं को जुटाना ही खुशी का पैमाना मान लिया गया है। गर खुशी मात्र पैसे से ही मिलती तो शायद कोई भी साधन सम्पन्न व्यक्ति अवसादग्रस्त न होता।।मेरी दृष्टि में जब हमारा पैशन हमारा प्रोफेशन बनाता है तो व्यक्ति कर्मक्षेत्र में बेहतरीन कार्य करेगा।।
उसका हर लम्हा खुशग्वार होगा।।
दूसरे जब तक शिक्षा के भाल पर संस्कारों का टीका नहीं लगता,तब तक शिक्षा अधूरी है।अधिकारों और जिम्मेदारियों की लक्ष्मण रेखा जानना बहुत जरूरी है।।
तीसरे जब तक हम नहीं जानेंगे कि प्रेम से पहले सम्मान ज़रूरी है, न खुद खुश रह सकते, न ही किसी को खुश रख सकते हैं।।
अपने लिए ही महंगे महंगे उपकरण ले कर हम कुछ समय के लिए आनंदित तो हो सकते हैं,पर सच्ची खुशी के ये पैमाने कतई नहीं।।
जब तक हृदय में दया,करुणा का संचार नहीं होगा,दूसरों के दर्द उधारे लेने नहीं आएंगे,खुशी के मायने समझ ही नहीं आयेंगे,खुशी लेने में नहीं,देने में मिलती है।।
अधिकाधिक संग्रह खुशी का मापदंड नहीं,अपनी कमाई का कुछ हिस्सा जरूरतमंद लोगों को देने से सुकून,संतुष्टि और चैन सब मिलेगा।।
आज का इंसान एक मशीन जैसा हो गया है,बूढ़े मात पिता की उपेक्षा कर,घंटों मोबाइल में लगे रहना उसे ज्यादा अच्छा लगता है।लोक डाउन में कोरोना ने बहुत कुछ सिखाया है,अगर वाकई हमे समझ में आया है।
अक्सर हम मुख्य को गौण और गौण को मुख्य बना लेते हैं,जैसे मात पिता भाई बहन की बजाय फोन संग समय बिताना।हम भीतर से अकेले हो जाते हैं,जो अवसाद का कारण है।।
पैसे जिंदगी की बहुत बड़ी जरूरत तो है,मगर सब कुछ नहीं।।
परिवार के संग समय बिताना बहुत आनंद देता है,सब एक दूजे संग जुड़ते हैं।।
प्रकृति हमारी सही मायनों में शिक्षिका है,इसकी शरण में सच्चा सुकून और शांति है।पेड़ पौधे सबको लगाने चाहिए,प्रदूषण न फैलाएं।
संगीत नृत्य लेखन चित्रकारी खेलकूद अच्छा साहित्य पढ़ना ये हमे आंतरिक खुशी देते हैं।कला व्यक्ति को भीतर से सुंदर,शांत और सहज बना देती है।
कला सिखाती है वेद पढ़ो चाहे न पढ़ी,पर किसी की वेदना को ज़रूर जानो,और यथासंभव सहायता करो।।
सच्ची खुशी का आभास होगा।।
हर समर्थ एक निर्बल का हाथ थाम ले तो जग कल्याण हो जाए।।
महापुरषों की जीवनी पढ़ उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए,रामायण गीता के अनेक प्रसंग हमें जीवन जीने की कला सीखते हैं।
बापू के तीन बंदर भी हमे यही सिखाते हैं बुरा मत बोलो,बुरा मत कहो,बुरा मत सुनो।।
जब हम खुद को किसी व्यसन के आधीन कर लेते हैं,फिर झूठ बोलना,अपराध करना सामान्य सा हो जाता है,हमारा वर्तमान और भविष्य अंधकारमय हो जाते हैं।।
सार यही है अंधाधुध भागने से कभी सुकून नहीं मिलता।जिंदगी जीने का कोई निर्धारित पाठ्यक्रम तो नहीं,पर हमारा चयन हमारे भाग्य को निर्धारित करता हैं।एक बार कृष्ण जी से किसी ने पूछा आप तो महाभारत युद्ध में खुद अर्जुन के सारथी थे,भगवान थे आप तो,आपने ये उतना बड़ा युद्ध कैसे होने दिया???
कृष्ण ने बहुत गहरा उत्तर दिया,कहा मैं तो शांति दूत बन दुर्योधन के पास गया था,मात्र पांच गांव पांडवों के लिए मांगे थे,परंतु इस विकल्प को उसने नहीं माना,कहां सूई की नोक के बराबर भी जगह नहीं दूंगा,उसका चयन ही उसके दुर्भाग्य का कारण बना।।यही बात हम सबके साथ है,हमारा चयन और हमारा प्रयत्न ही हमारे भाग्य के आधार स्तंभ हैं।।
जब तक हम इन गहराइयों को नहीं समझेंगे,सही दिशा में कर्म नहीं करेंगे।।
पांडवों का हक मार कर कौरव क्या खुश रह पाए????
बचपन से ही सुनते आए हैं honesty is the best policy अगर इसे वाकई अपना लें,तो सच्ची खुशी,चैन सुकून सब अपने आप ही मिल जाएगा।।
स्नेह प्रेमचंद
बहुत अच्छे विचार हैं। 🙏❤️
ReplyDelete