जब भाव प्रबल हो जाते हैं,
शब्द अर्थ हीन हो जाते हैं।
फिर मौन मुखर हो जाता है,
ये इतना गहरा नाता है।
फिर धड़कन धड़कन संग बतियाती है।
याद किसी खास की,अधिक ही आती है।।
धुआं धुआं सा हो जाता है मन,
फैल जाती है गहरे कोहरे की सफेद चादर।
सजल नयन,अवरुद्ध कंठ,स्नेह संग तेरे लिए मन में था री!अति आदर
नहीं आता याद मुझे
कभी हुई हो नोक झोंक भी संग तेरे।
तुझ से कितने सुंदर थे री! सांझ सवेरे।।
अनंत गगन में कतारबद्ध से परिंदे
लयबद्ध तरीके से उड़े जाते हैं।
ऐसे ही उड़ती रही तूं उपलब्धियों के अम्बर में, हर किरदार में उम्दा तुझे सब पाते हैं।।
ओ जादूगर! गजब था तेरा करिश्माई वजूद,तेरी महक से आज भी महक रहा अस्तित्व मेरा,सब अपने आप ही तुझ से जुड़ा हुआ पाते हैं।
जग रूपी इस कीचड़ में खिली रही कमल सी,एक ऐसा रही प्रतिबिंब,
जिसमे सब अपना अपना अक्स देखे जाते हैं।।
जब भाव प्रबल हो जाते हैं,
फिर शब्द अर्थ हीन हो जाते हैं।
फिर मौन मुखर हो जाता है,
ये इतना गहरा नाता है।।
नहीं बना प्रेम मापने का कोई
पैमाना,
जो कर पाती हाल ए दिल बयान।
सच में ओ मां जाई!
तूं धरा पर थी अदभुत वरदान।।
धरा सा धीरज,उड़ान गगन सी,
पवन सी शीतल,हरी हरियाली सी,
रंगोली में रंग सी,पर्वों में दीवाली सी,
दिल में धड़कन सी,नयनों में ज्योति सी
ऊषा में लालिमा सी,
सीप मुख में मोती सी,
सागर में गहराई सी,
ब्याह में शहनाई सी,
कोयल में कूक सी,
आम पर अमराई सी,
संगीत में सुर सी,
नदिया में नीर सी
मां में ममता सी,
पिता में सुरक्षा सी,
ज्ञान में गुरु सी,
गगन में आफताब सी,
हर्फ ही नहीं
भावों की पूरी किताब सी,
जीवन में सुकून सी,
कर्म में जुनून सी,
और परिचय क्या दूं तेरा???
अल्फाज थोड़े पड जाते हैं।
जब भाव प्रबल हो जाते हैं
शब्द अर्थ हीन हो जाते हैं।।
फिर धड़कन धड़कन संग बतियाती है
और याद किसी की अधिक ही आती है।
कोई और नहीं,है वो मेरी मां जाई,
जो न जिक्र से ना जेहन से पल भर भी जाती है।।
स्नेह प्रेमचंद
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