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जीवन के शामियाने तले(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जीवन के शामियाने तले
,दोनो का ही जीवन संग संग चले,
हो धूप घणी या शीतल फुहार।
बस रहे प्रेम यूँ ही बरकरार।।
खून का नहीं है ये प्रेम विश्वास का नाता
बस बखूबी इसे निभाना हो आता।।
जब तक एक दूजे की भावनाओं का
नही रखेंगे ध्यान।
समय बीतने पर भी रिश्ता बना रहेगा अनजान।।
प्रीत की रीत ही गर नहीं निभाई,
सजनी रहेगी साजन के लिए पराई।।
जाने कितने ही विकल्पों में से होता है ये चयन,
एक ही तस्वीर देखना चाहते हैं नयन।।
प्रेम ही था,प्रेम ही है,प्रेम ही होगा
हर रिश्ते का आधार,
जीने के लिए है ये ज़िन्दगी,
काटने के लिए नहीं,
सत्य को करना होगा स्वीकार।।
जाने क्या क्या छोड़ के सजनी
घर साजन के आती है,
हर रीत रिवाज़ उस चौखट के,
पूरी तन्मयता से निभाती है।
नए रिश्तों के नए भंवर में
वो उलझी उलझी सी जाती है,
अहम छोड़ कर वयम की ढपली
प्रेम के सुर और समर्पण की सरगम
से सतत आजीवन वो बजाती है।।
एक ही गाड़ी के हैं दो पहिये,
ये बात समझ क्यों नही आती है।।
क्यों कई बाद संवेदना किसी
कोने में छुप के सो जाती है।।
हो ही नहीं पाया अहसास
कब बीत गए 27 साल
बहुत शुक्रिया ईश्वर का,
मिले जो तुझ से पुर्सान ए हाल।।
सुख दुख आते रहते हैं जीवन में,पर बन कर रहना यूं ही ढाल।।

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