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प्रेम से सुंदर कोई अहसास नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कोई शस्त्र नहीं,कोई शास्त्र नहीं,
प्रेम तो पुष्प है,जैसे पारिजात।

कोई शब्द नहीं,कोई शोध नहीं,
प्रेम तो शादी मंडप में जैसे बारात।।

कोई व्यवसाय नहीं,
कोई सिद्धांत नहीं,
प्रेम है सबसे सुंदर जज़्बात।।

प्रेम तो है बस एक सुखद अनुभूति,
प्रेम तो है बस और बस हृदय की बात।
प्रेम से बढ़ कर इस धरा पर,
नहीं ईश्वर की कोई सौगात।।

प्रेम में जिद्द नहीं,
 कोई अहंकार नहीं
प्रेम से सुंदर सच में,
 कोई संसार नहीं।।


प्रेम मापने का बेशक
 कोई निर्धारित पैमाना नहीं होता,
पर जो जिक्र और जेहन दोनो में
रहते हैं,प्रेम उन्हीं से गहरा है होता।।


नहीं होता *कोई*प्रेम का कारण,
*क्यों* का भी प्रेम से नहीं कोई नाता।
प्रेम मस्तिष्क की बात नहीं,
दिल को प्रेम निभाना आता।।

*पीपल* सा होता है प्रेम,
कहीं भी अंकुरित हो जाता है।
*केसर क्यारी*सा होता है प्रेम,
जो जाने कितने ही जीवन 
महकाता है।।

प्रेम तो वो "पारस* है जो
हर प्रेमी को सोने में बदल देता है।
प्रेम तो वो *इत्र" है,
जो हर प्रेमी को सुवासित कर देता है।।
प्रेम तो वो *आफताब* है जो रोएं रोएं को चमका देता है, 
जर्रे जर्रे को खिला देता है।।

इंदु की शीतल ज्योत्सना है प्रेम,
गगन का असीम विस्तार है प्रेम,
धरा का संयम है प्रेम,
प्रकृति की हरियाली है प्रेम,
पर्वों में दीवाली है प्रेम।।

प्रेम तो है बस बात हृदय की,
वहां किसी भी *क्यों* को नहीं मिलता प्रवेश।
प्रेम तो "आत्मा का मिलन है परमात्मा से*
प्रेम में सिर्फ और सिर्फ 
स्नेह का ही है समावेश।।

प्रेम लेना नहीं जानता,
प्रेम को देने में सच्ची खुशी मिल जाती है।
प्रेम की जब चलती है आंधी,
नफरत को उड़ा ले जाती है।।

*रोएं रोएं में फैल जाता है प्रेम,
प्रेम है एक गहरी मिठास।
प्रेम तो इतना ज़रूरी है जग में,
जैसे तन में होते हैं सबके श्वास।।

*प्रेम करुणा है,प्रेम मुस्कान है*
*प्रेम से ही सुंदर ये सारा जहान है*
प्रेम किसी रिश्ते और प्राप्ति का नहीं होता मोहताज।
*राधा और मीरा* का प्रेम कान्हा से,
इसी सत्य का बजाता है साज।।

*प्रेम से नजर नहीं,
नजरिया ही बदल जाता है।
"प्रेम सागर सा गहरा है,
प्रेम स्वरूप सबको नजर नहीं आता है।।

"प्रेम से सुंदर कोई अहसास नहीं,
*प्रेम से अधिक कहीं भी रास नहीं,
*प्रेम न जाने कोई जाति,मजहब,
*प्रेम न जाने ऊंच नीच का भेद।
*प्रेम रंग में रंग जाती है जब चुनरिया जिसकी,
नहीं रहता उसे कोई खेद।।

*प्रेम आस है विश्वास है*
*प्रेम समर्पण है प्रेम विकास है*
*प्रेम है तो बन जाती है खास
छोटी से छोटी भी बात।
*प्रेम से निर्मल कुछ भी तो नहीं,
आता है नज़र हर एक जज़्बात।।
प्रेम प्रेम है 

*सम्मान की नींव पर ही
प्रेम के भवन का होता है निर्माण।
*प्रेमी जन जानते हैं बस करना,
एक दूजे का कल्याण।।
*प्रेम समर्पण है,प्रेम प्रकाश है
*प्रेम ऊर्जा है,उमंग है प्रेम उल्लास है
*प्रेम करुणा है प्रेम आत्म विकास है
*प्रेम गरिमा है प्रेम मधुर संबंध है।।
*प्रेम की हो ही नहीं सकती कोई भी एक निश्चित परिभाषा।
*जिंदगी के तमस में प्रेम ही है उजियारे की एक मात्र आशा।।

*मैने पूछा प्रेम से रहते हो कहां????
हौले से मुस्कुरा दिया प्रेम,
बोला, "रहती है करुणा,सहजता, जिजीविषा और विनम्रता जहां"


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