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कोई राग न हो,कोई द्वेष न हो(( Thought on new year by Sneh premchand))

अंत हो अंतस की पीड़ा का,
हो, ईश्वर की सब पर कृपा अपार।
कोई राग न हो,कोई द्वेष न हो,
हो प्रेम भरा,सारा संसार।।

विषाद न हो,अवसाद न हो,
वाद न हो कोई विवाद न हो,
चिंतन हो पर चिंता न हो,
काम, क्रोध,अहंकार न हो,
चित  में कोई विकार न हो,
बस चहुं दिशा में चले ,
प्रेम प्रीत की मधुर बयार।
कोई राग न हो,कोई द्वेष न हो,
कोई कष्ट न हो,कोई क्लेश न हो,
सहजता भरा हो सबका संसार।।

शौक न हों बेशक पूरे,
पर जरूरतें तो सबकी पूरी हों।
सबको मिले रोटी कपड़ा मकान,
ख्वाइशें किसी की अधूरी न हों।।
स्वार्थ से परमार्थ की,
अहम से वयम की,सर्वत्र चले बयार।
अंत हो अंतस की हर पीड़ा का,
हो ईश्वर की सब पर कृपा अपार।।

सबल हाथ थाम ले निर्बल का,
मिले सबको शिक्षा का अधिकार।
शिक्षा के भाल पर सोहे तिलक संस्कार का,
प्रेम हो हर रिश्ते का आधार।।
हटे तमस,आए उजियारा,
रहे न किसी के भी जीवन में अंधकार।
ज्ञान का दीप हो सतत प्रज्वलित,
नैराश्य के हटें बादल,उजला उजला हो संसार।।
अंत हो अंतस की पीड़ा का,
हो सब पर ईश्वर की कृपा अपार।।

कोई मार न हो,कोई काट न हो,
करुणा का हर चित में हो संचार।
मात्र जिह्वा के स्वाद की खातिर,
कभी न चलाएं किसी पर कटार।।
*अहिंसा परमो धर्म हमारा*
भारतीय संस्कृति का यही आधार।।
कोई राग न हो,कोई द्वेष न हो,
हो प्रेममय सारा संसार।।

प्रतिभा को प्रोत्साहन मिले,
हर आंगन खुशियों से हो गुलजार।
बेटा बेटी एक समान हों,
ऐसी सोच का हो संचार।।
कोई भेद न हो,कोई शोषण न हो,
कोई आतंक न हो,कोई प्रदूषण न हो,
स्वच्छ धरा हो,स्वच्छ हो अंबर
स्वस्थ हों सब,हों सुंदर विचार।।
अंत हो अंतस की पीड़ा का,
हो ईश्वर की सब पर कृपा अपार।।

दर्द उधारे लेने आएं,
आगे आ कर हाथ बढ़ाएं,
मलिन मनों से सब धुंध कुहासे हट जाएं,
निभाएं सब अपना उत्तम किरदार।
कोई राग न हो,कोई द्वेष न हो,
हो प्रेम भरा सारा संसार।।

गण और तंत्र में सही समझ हो,
सब समझें अपनी नैतिक जिम्मेदारी।
दोषारोपण की छोड़ें आदत,
स्वयं सुधार की आए बारी।।
आत्मावलोकन कर, 
करें आत्म मंथन,
फिर उसी दिशा में हो कर्म जारी।।
सोच कर्म परिणाम की बहे त्रिवेणी,
हो सकारात्मक ऊर्जा का संचार।
अंत हो अंतस की पीड़ा का,
हो प्रेम भरा सबका संसार।।

नव वर्ष में संकल्प करे सफर सिद्धि तक,सच में ही बदल जाएगा संसार।
प्रेम से पहले है सम्मान ज़रूरी,
इस सोच का सर्वत्र हो संचार।।
अंत हो अंतस की पीड़ा का,
हो सब पर ईश्वर की कृपा अपार।।

ऐसा हो जाए गर इस बरस तो,
तो सच में हैपी न्यू ईयर हो जाएगा।
कथनी में नहीं जब करनी में होगा
यह सब कुछ,नया साल,बेहतरीन साल बन पाएगा।।
कोई लोभ न हो,कोई मोह न हो,
न पनपे चित में कोई विकार।
कोई राग न हो,कोई द्वेष न हो,
हो प्रेमभरा सबका संसार।।

कोई नयन न हो सजल,
अधरों पर खिले सबके मुस्कान।
तेरा मेरा सबका हो मंगल,
सुंदर हो जाएगा जहान।।
एक यही अरदास प्रभु से,
कर रहे बिनती बारंबार।
अंत हो अंतस की पीड़ा का,
हो प्रेम भरा सारा संसार।।
    स्नेह प्रेमचंद






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