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कब बीत गए

कब बीत गए बरस 27
हो ही नहीं पाया अहसास।
कारवां चलता रहा,
समय गुजरता गया, 
घटती रही घटनाएं,
कभी आम और कभी खास।।

जीवन के सफ़र की कल्पना भी
अब एक दूजे बिन लगती है अधूरी।
ये रिश्ता ही ऐसा है,
हौले हौले सिमट जाती है हर दूरी।।
हर भोर उजली है संग एक दूजे के,
और हर  सांझ बन जाती है सिंदूरी।।

साथ बना रहे,विश्वास सजा रहे,
है नाता सच मे ये अति खास।
कब बीत गया समय इतना,
हो ही नहीं पाया आभास।।

कभी घाव मिले,कभी मिला मरहम
कभी ह्रास हुआ कभी हुआ विकास
पर एक के दूजे का होना ही,
सच में होता है सुखद अहसास।।

खून का तो है नहीं ये नाता,
हो इसमें प्रेम,समर्पण,परवाह और विश्वाश।
इन भावों से लबरेज नाता ही,
सच में बन जाता है अति खास।।

प्रेम का नाम परफेक्शन कभी नहीं होता।
जब एक दूजे को एक दूजे के गुण दोषों संग करते हैं हम स्वीकार,
वही प्रेम का सच्चा दर्पण है होता।।

कोई भी दो व्यक्ति
 कभी एक जैसे नहीं होते
व्यक्तिगत भिन्नता तो निश्चित ही होती है,इस समझ से नाते गहरे ही हैं होते।।
आ जाती है समझ जब ये सच्चाई,
प्रेम का हिवडे में हो जाता है वास।
कब बीत गए बरस 27,
हो ही नहीं पाया अहसास।।

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