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दोनो का जीवन यूं ही चले

जीवन के शामियाने तले
,दोनो का ही जीवन संग संग चले,
हो धूप घणी या शीतल फुहार।
बस रहे प्रेम यूँ ही बरकरार।।
खून का नहीं है ये प्रेम विश्वास का नाता
बस बखूबी इसे निभाना हो आता।।
जब तक एक दूजे की भावनाओं का
नही रखेंगे ध्यान।
समय बीतने पर भी रिश्ता बना रहेगा अनजान।।
प्रीत की रीत ही गर नहीं निभाई,
सजनी रहेगी साजन के लिए पराई।।
जाने कितने ही विकल्पों में से होता है ये चयन,
एक ही तस्वीर देखना चाहते हैं नयन।।
प्रेम ही था,प्रेम ही है,प्रेम ही होगा
हर रिश्ते का आधार,
जीने के लिए है ये ज़िन्दगी,
काटने के लिए नहीं,
सत्य को करना होगा स्वीकार।।
जाने क्या क्या छोड़ के सजनी
घर साजन के आती है,
हर रीत रिवाज़ उस चौखट के,
पूरी तन्मयता से निभाती है।
नए रिश्तों के नए भंवर में
वो उलझी उलझी सी जाती है,
अहम छोड़ कर वयम की ढपली
प्रेम के सुर और समर्पण की सरगम
से सतत आजीवन वो बजाती है।।
एक ही गाड़ी के हैं दो पहिये,
ये बात समझ क्यों नही आती है।।
क्यों कई बाद संवेदना किसी
कोने में छुप के सो जाती है।।
हो ही नहीं पाया अहसास
कब बीत गए 27 साल
बहुत शुक्रिया ईश्वर का,
मिले जो तुझ से पुर्सान ए हाल।।
सुख दुख आते रहते हैं जीवन में,पर बन कर रहना यूं ही ढाल।।

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

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सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व