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कुछ न कुछ तो सिखाता है (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*हर घटना और किरदार महाभारत का* कुछ ना कुछ हमें सिखाता है। 

यह बात दूसरी है,
 किसी को जल्दी किसी को देर से समझ में आता है।।

छल से जुआ तो बेशक जीत गया 
शकुनि, 
पर ये चलन छल का,
 अंत में उसको ही छले जाता है।
किसी को जल्दी,किसी को देर से यह सत्य समझ में आता है।।

*मित्र से बढ़ कर कोई इत्र नहीं*
निर्धन सुदामा का भव्य स्वागत द्वारकाधीश द्वारा,
जगत को बखूबी समझाता है।
किसी को जल्दी,किसी को देर से समझ ये आता है।।


*प्रतिशोध और नफरत की ज्वाला दूजे से पहले स्वयं को जला देती है*
*दुशासन की छाती के लहू से केश धो कर ही बांधूंगी*
ऐसी ज्वाला चित शांति अपनी ही हर लेती है।
पिता द्रोण की हत्या के बदले की भावना, 
अश्वथामा को भी दुरात्मा बना देती है।
पांच पांच पांडुपुत्रो की करा हत्या,
विवेक उसका हर लेती है।।

*प्रतिशोध से क्षमा बेहतर है*
किसी को जल्दी किसी को देर से समझ में आता है।
महाभारत की हर घटना और हर किरदार हमे कुछ न कुछ अवश्य सिखाता है।।

वक्त के साथ जो ढाल लेता है खुद को,
वक्त निश्चित ही उसका एक दिन बदल जाता है।
अज्ञातवास में द्रोपदी संग पांचों पांडव रहे जिस जिस हाल में,
उनका विवेक एक दिन उन्हें विपत्ति से बाहर ले आता है।।

*गलत का साथ देने वाला भी सदा गलत कहलाता है*
 करण के किरदार से सत्य यह बखूबी समझ में आता है।।
दिया साथ दुर्योधन का उसने,
बेशक पांडवों से उसका सगे भाई का नाता है।।
परिणाम जानता है जग सारा,
बेकसूर होते हुए भी,
असमय मौत को गले लगाता है।।

एक गलती की सजा से पूरा इतिहास ही दागदार हो जाता है।
कुंती ने दिया जन्म जो कर्ण को बिन ब्याह के,
आजीवन यह सत्य उससे झूठ बुलवाता है।।
भाई, भाई के ही कफन का कारण बन जाता है।।
सही समय पर सही बात न बता कर,
व्यक्ति सदा के लिए दोषी बन जाता है।
यही तो किया कुंती ने,
जिसकी सजा पुत्र कर्ण ही तो पाता है।

यह संसार बुरे लोगों की वजह से इतना आहत नहीं होता जितना बुरा होने पर सही लोगों के मौन के कारण होता है।
भरी सभा में चीर हरण हुआ पांचाली का,
प्रतिज्ञा से बंधे भीष्म को गलत होता हुआ देख कर भी वक्त मजबूर और असहाय सा पाता है।।

ऊंचे सपने देखना अच्छी बात है पर जरूरत से अधिक महत्व आकांक्षी होना कभी नहीं होता अच्छी बात।
यही आचरण अपनाया कौरव पुत्रों ने,
सब जानते हैं क्या मिली उन्हे सौगात।।

*तन से अपंग होना कभी बस में नहीं होता हमारे*
*पर मन से अपंग होना तो ला देता है तबाही सांझ सकारे*
धृतराष्ट्र ने तन संग मूंद ली थी मन की भी आंखें,
जो जान बूझ कर बने रहे अनजान।
दुर्योधन को नहीं रोका कभी कुमार्ग पर चलने से,
 सौ सौ पुत्रों का धरा से मिट ही गया नामोनिशान।।

गांधारी ने भी की गलती,जो आंखों पर जानते बूझते भी पट्टी बांधी, पति नहीं देख सकते था उसे यह था भली भांति ज्ञान।
पुत्रों की सही परवरिश के लिए खोल नेत्र देना चाहिए था उसे तो अधिक ध्यान।।
पत्नी संग मां भी तो थी सौ सौ पुत्रों की,उसे तो अधिक जिम्मेदारी का होना चाहिए था भान।।
परिणाम जानता है जग समूचा,
कोख हो गई उसकी वीरान।।

कोई भी बड़ी विपत्ति,
 ला सकते हैं बड़े बोल अहंकार के।
द्रोपदी का कहना *अंधे का पुत्र अंधा*
कपाट दुर्योधन के, खोल गया विकार के।।
*सूत पुत्र को नहीं वरूंगी*
भेद गया कथन ये कर्ण का सीना।
इतना आहत हो गया कर्ण,
सही से उसे नहीं आया फिर जीना।।

*बिन हड्डी की छोटी सी जीभ ला सकती है बड़ी सुनामी*
सोच कर बोलो,बोल कर सोचने से क्या होगा,परिणाम भयंकर भुगतने पड़ते हैं आगामी।

बिन देखे बिन सोचे कभी कुछ न बोलो,
बोलने से पहले एक नहीं,
दस बार करो विचार।
अर्जुन स्वयंबर में जीत कर लाया द्रौपदी को,
बिन देखे ही कह दिया कुंती ने,
बांट लो आपस में पांचों,
पांचों का ही हो उस पर अधिकार।।
द्रौपदी से बनना पड़ा उसे पांचाली,
कैसे मन से, उसने किया होगा स्वीकार?????
तन मन दोनो ही हो गए होंगे घायल,
रिसते होंगे घाव मन के जाने कितनी ही बार।।

*कभी किसी का हक न छीनो,
नहीं होता इससे बड़ा कोई भी पाप*

क्या लाए थे,क्या साथ जाना है बंधु
क्यों किसी की बददुआ की लें सौगात???
*शांति प्रस्ताव ले कर जाते हैं जब माधव*
मात्र पांच गांव ही मांगते हैं दुर्योधन से,
दिखा दी उसने छोटी सोच और बद नीयत की औकात।।
*सुईं की नोक के बराबर भी जगह नहीं दूंगा*
कितनी ओछी,घिनौनी, कितनी घटिया बात।।
असमय की काल को दे दिया निमंत्रण,मिली मृत्यु की सौगात।।
जीवन से बेहतर तो पांच गांव ही दे देता,
कीचड़ में बन जाता जलजात।।

*नारी की जहां होती है पूजा,देवता भी रमण वहां करते हैं*
यह है हमारी भारतीय संस्कृति और  भारतीय संस्कार।
कौरव राज सभा में विपरीत ही हुआ,हुआ कलंकित पूरा सभागार।
की, पुकार पांचाली ने माधव से,
बढ़ा चीर ,मान बचाया,हुई चहुं दिशा में माधव की जय जयकार।।
*होता है समर्पण जब सच्चा,
ईश्वर सुन ही लेते हैं पुकार*

बुरे का अंत बुरा ही होता है,
अंततः दुशासन को करना पड़ा था स्वीकार।
देवर तो पुत्रवत होता है भाभी के लिए,लांघ गया सारे अधिकार।।

दुष्ट दुशासन लाया केशो से खींच कर पांचाली को,
उसे निर्वस्त्र करने का करता है यत्न।
आज भी सिसक रहा है इतिहास अतीत की इस बुरी घटना से,
आज भी याद कर नम हो जाते हैं नयन।।
महाभारत युद्ध का कारण बनी ये घटना,
जाने कितने ही घरों के बुझे चिराग।
समय पर ही रोक दी जाएं गर बुरी बातें,इतने बुरे परिणामों की न लगे कभी भीषण आग।।

*व्यसनों से सदा दूर रहो,
व्यसन होते हैं अति खराब*
जुए की आदत ले डूबी पांचों पांडवों को,
घर की लाज की भी खुल गई किताब।।

*वस्तु नहीं व्यक्ति है नारी*
दिया धर्मराज को किसने उसे दाव पर लगाने का अधिकार???
आज तलक भी उत्तर नहीं मिला इसका,
सुलग सुलग मांगता उत्तर यह प्रश्न बारबार।।

*मात्रात्मकता से अधिक महत्वपूर्ण है गुणवत्ता*
एक तरफ माधव की अक्षोहिणी सेना, एक तरफ थे द्वारकाधीश।
दुर्योधन ने चुनी विशाल सेना,पांडवों को मिला कृष्ण साथ का शुभ आशीष।।

*आवश्यक है,
 हो किसी भी विषय का पूर्ण ज्ञान*
मां के गर्भ में चक्रव्यूह में जाने का मार्ग तो पता चल गया अभिमन्यु को,
पर बाहर निकलने का नहीं उन्हे था भान।।
महारथी होते हुए भी उन्हें गंवानी पड़ी थी अपनी जान।।

अनेक विकल्पों में से हमारा भाग्य निर्धारित करता है हमारा चयन, हमारा इंतखाब।
शांति प्रस्ताव ठुकरा कर युद्ध करना चुना दुर्योधन ने,दिया वक्त ने करारा जवाब।।
गदा युद्ध में हार गए भीम से,
गंवा प्राण गलतियों का देना पड़ा हिसाब।।

*अपने ही जब लड़ते हैं अपनों से,
हार जीत दोनों ही होती हैं बेकार*
भाई भाई के रक्त का ही हो गर प्यासा,
फिर चिन जाती है दूरियों की दीवार।।

*होती है जब जब हानि धर्म की,
धर्म की और साधुओं की रक्षा के लिए ईश्वर ले लेते हैं अवतार*
माधव का सारथी होना पार्थ का,समझा जाता है सारा सार।।

धर्म की रक्षा के लिए,मोह का चश्मा पड़ता है हटाना।
कुरुक्षेत्र में जब अपनो को देख पार्थ के मन में जन्म लेता है मोह,
*गीता ज्ञान* से माधव को पड़ा था मार्ग दिखाना।।

*एकता और प्रेम से बढ़ कर कुछ नहीं इस संसार में*
*यही समझ आता है मुझे तो इस महाभारत के सार में*
     स्नेह प्रेमचंद



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