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जीवन के सफर में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जीवन के सफर में ओ हमसफ़र!
देखो, सदा ही साथ निभाना।

प्रेमडोर न टूटे कभी,
इस बंधन को गहरा करते जाना।

समय संग संग ये नाता
 और भी गहरा होता जाए।
जैसे धानी सी हिना हौले हौले
श्यामल श्यामल होती जाए।।
लड़ झगड़ कर भी संग बस
 एक दूजे का एक दूजे को भाए।
कभी रूठूं मैं,तो मना लेना झट से,
कहीं एक भी पल हमारा व्यर्थ ना जाए।।

खून का तो है नही,
बस है ये प्रेम  औऱ विश्वास का नाता।
अनजान राह के जब मिल जाते हैं मुसाफिर,
उनको निभाना हो बखूबी आता।।
सुख दुख दोनो हों अब सांझे सांझे,
ऐसी प्रेम की पींग बढ़ाना।
सूरत ए हाल कोई भी हो,
साथ देने से ना कतराना।।
जीवन के सफर में ओ हमसफर!
देखो सदा ही साथ निभाना।।
मुझे प्यार तुमसे ही है,बिन कहे ये समझ सा जाना।।

कुछ तुझ में कमी,कुछ मुझ में भी होगी कमी,
कुछ  दरगुजर,कुछ दरकिनार सा करते जाना।
हर स्पीड ब्रेकर को पार करेंगे संग संग,
गाना सदा ही प्रेम भरा सा तराना।।
एक नहीं ये तो जन्मों जन्मों का है बंधन साथी,
हर जन्म में मेरे हमराही बन जाना।।

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