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Mhashivratri Special ना आदि है ना अंत जिसका(( विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा))

*ना आदि है ना अंत जिसका*
अनंत रूप है उसका,
पूरा ही ब्रह्मांड हैं शिव,
और शिव हैं निराकार।
जानी जिसने शिव महिमा,
हो गया,भव सागर से पार।।

*कोई लोक नहीं,कोई दिशा नहीं*
जहां शिव प्रभाव न हो।
जगत का कोई कण नहीं,
*जहां भागीरथी का रिसाव ना हो*

करते हैं जब *तांडव*भोले,
ये वही,महाशिवरात्रि की रात है।
चैतन्य जागृति की रात है।
धरा गगन ठिठक गए थे,
त्रिपुरारी की ऐसी बात है।।

किया तांडव, आदियोगी ने ऐसा,
* सागर लहरियां* भी हो गई थी खामोश।
पूरी *सृष्टि* हुई नतमस्तक आगे जिसके,
 लाते उत्सव,उल्लास,चेतना,विकास और जोश।।

आज ही के दिन, हुआ *सागरमंथन*
 पी गरल को,नीलकंठ कहलाए।
धरा को बचाया विनाश से,
भागीरथी को जटाओं में बहा लाए।।
*जगत कल्याण* ही जिनकी,
सोच और कर्म का हैं आधार।
पूरा ही *ब्रह्मांड* हैं शिव,
शिव आदियोगी निराकार।।

पूरा अस्तित्व ही शिव का है *प्रतीकात्मक*
नजर नहीं नजरिए की होती है दरकार।
*जटाओं में बहती गंगा* प्रतीक है
उस ज्ञान गंगा के प्रवाह की, जो एक पीढ़ी से दूज़ी में स्थानांतरित होती है,
बड़ी सोच लबरेज ज्ञान से,
सत्कर्मों को देती आकार।।

*सिंह चर्म*निर्भयता का प्रतीक है सब निर्भय हों,सब सुखी हों,
हो पूरा ही जग, प्रेम भरा परिवार।।

*शिखर पर चंद्र* प्रतीक है अनंत काल का, आदि योगी,भोले बाबा समय से भी हैं परे,नाम चंद्रशेखर है पाया।
भोले की महिमा है ऐसी, तीनों लोकों,
दसों दिशाओं में सबने गाया।।

*शिव की तीसरी आंख* प्रतीक है,
 अंत बुराई और अज्ञान का,
खुल जाए तो ला सकती है जो विनाश।।
जब जब होती है हानि धर्म की,
शिव तांडव से गूंज जाता है आकाश।।

*सांप*प्रतीक है अहंकार के नाश का,
जो बन सकता है बाद में अलंकार।।
*रुद्राक्ष* प्रतीक है मन की पावनता,निर्मलता का,यही इन सब का सार।

*त्रिशूल* प्रतीक है ज्ञान,इच्छा और निष्पादन करने का, यही विचार।।
डमरू प्रतीक है वेद वाणी कितनी महत्वपूर्ण है, हैं कितने महत्वपूर्ण ये मंत्रोच्चार।।

*भस्म* प्रतीक है सब नश्वर है,
 माटी से जन्मे माटी में ही मिल जाएगा ये संसार।।


वे आदियोगी हैं,
 जिनके योग पर टिकी समष्टि है।
वही तो हैं शिव,
 जिनकी साधना में टिकी सृष्टि है।।
डम डम डम डम डमरू नाद गूंजता,
शिव तांडव पर पूरा ब्रह्मांड है झूमता,


गले में रोक ले गरल, 
वही नीलकंठ है ये भोलेनाथ।
भोले बाबा करूंण हृदय,महाकाल गणनाथ।
महादेव हे भूत पति,चंद्र विराजे माथ।।
ऊंचे शिखर पर बैठा कोई व्यक्ति नहीं,बहुत ही ऊंचा विचार है शिव, थाम लेते हैं सदा कष्ट में हाथ।।

*शिव अनुभव हैं अनुभूति हैं,
 नहीं हैं शिव इजहार*
तर्क और विज्ञान के युग में दिखाई देना ही आधार।।
बेशक दिखाते नहीं हैं शिव,
पर शिव से बड़ा कोई सत्य नहीं।
सत्यम शिवम सुंदरम हैं शिव,
शिव से बेहतर कोई सार नहीं।।

हवा होती तो है दिखाई नहीं देती
जड़ें होती तो हैं  दिखाई नहीं देती
सब्जी में नमक होता तो है दिखाई नहीं देता।
शिव दिखते नहीं पर शिव से बड़ा कोई सत्य नहीं।
विचार होते तो हैं पर दिखते नहीं,
पर विचारों से बड़ा कभी कोई व्यक्ति नहीं।।

विचार से ही पुरुष महापुरुष बन जाते हैं
वही भगत सिंह,वही गांधी और विवेकानंद कहलाते हैं।।

भावों का जन्म हो जाता है चित में बेशक वो दे ना दिखाई
ऐसी ही शिव महिमा है,
है धन्य जिसे रास आई।।

कागज़ पर जब हो जाती है अंकित कविता,
मानस और गीता कहलाई।
शिव अनुभव हैं,अनुभूति हैं,
मन की आंखों से देते हैं दिखाई।।

ना आदि है ना अंत जिसका,
रूप अनंत है उसका।
पूरा ही ब्रह्मांड हैं शिव,
और शिव हैं निरंकार।
जानी जिसने शिव महिमा,
हो गया भाव सागर से पार।।

खोजना है तो खोजो उन्हें,
अंतर्मन के गलियारों में।
रोम रोम में शिव बसे हैं,
बस हैं नहीं तो विकारों में।।

तर्क से ऊपर हैं वे,
समय सीमा से भी परे हैं वे,
इंद्रियों के आधीन नहीं।।
कौन सा कोना है धरा पर,
जहां भोले बाबा आसीन नहीं??????
         स्नेह प्रेमचंद





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