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कोई तो भोर,कोई तो सांझ बता दो ऐसी(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कोई तो भोर कोई तो,
 साँझ बता दो ऐसी
जब तूं न हो मेरे जेहन में आई???
अमिट छाप छोड़ गई हिया में ऐसी
जैसे हिना धानी से श्यामल हो आई।।

*हानि धरा की,लाभ गगन का*
यही समझाती है जग से तेरी विदाई।
दिलों में बसना आता था तुझे,
ओ मेरी लाडो,मेरी सबसे छोटी मां जाई।।

*जुगनू नहीं आफताब थी तूं*
*हर्फ नहीं पूरी किताब थी तूं*
*मधुरम मधुरम व्यवहार तेरा*
*बजती थी मधुर सी शहनाई*
कोई तो भोर,कोई तो सांझ
बता दो ऐसी,जब तूं न हो याद आई???

प्रेम का *अनहद नाद* कहूं
या कहूं कर्म की मीठी सी अंगड़ाई।
*दिल में धड़कन* की संज्ञा दूं क्या
या कहूं *आम की अमराई*

प्रेम सुता! 
प्रेममंडप में कर्म का 
रही तूं सदा अनुष्ठान।
सच में ऐसा *आभामंडल*रहा तेरा,
तूं लगने लगी ईश्वर का अनुपम वरदान।
उपलब्धियां भी दामन थामे रही आजमाइशों का,
पर साबित हुई तूं *शक्तिमान*
*कर्मठता और जिजीविषा* मिली विरासत में जननी से तुझको,
तेरे जाने की नहीं हो सकती कभी भरपाई।
कोई तो भोर,कोई तो सांझ बता दो ऐसी,जब तूं न हो याद आई?????

*रौनक ए अंजुमन* रही सदा तूं,
दिलों में करती रही सदा सबके बसेरा
और परिचय क्या दूं तेरा????
तूं खिली रही जैसे मधुर सवेरा।।
ज्ञान भी अच्छा,व्यवहार भी अच्छा,
दिल में रही सदा करुणाई।
कोई तो भोर,कोई तो सांझ बता दो ऐसी,जब तूं न हो याद आई????
      स्नेह प्रेमचंद


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