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All about Ravidas Ji's Facts कहा माधव ने जो गीता में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह माधव ने जो गीता में,
 वही कह गए गुरु रविदास।
*कर्म धर्म है मानव का*
करो कर्म,ना रखो फल आस।।

*करम बंधन में बंध रहियो
फल की न तज्जियो आस।
करम मानुष का धर्म है,
सत भाखे रविदास*

कर्म करना धर्म है तो फल पाना सौभाग्य होता है हमारा।
यही कह गए रैदास सभी को,
जान ले वाणी उनकी ये जग सारा।।

मीरा के गुरु कह गए सबसे,
हर युग में प्रासंगिक उनका कथन।
कृष्ण,राम,रहीम, हरि,राघव
एक ही परमेश्वर के नाम अलग हैं, थोड़ा तो कर के देखो मनन।।

 एक ही ईश्वर की हैं
 बात सभी वेद,पुराण और कुरान।
सब ईश्वर की भगति का पाठ पढ़ाते,
 ऐसी ही मति का देते ज्ञान।।

हीरे से कीमती हैं हरि,
हो बेहतर इस सत्य को लें सब जान।
हरि भगति छोड़ करें जो अन्य आशा,
नरक जाने का करते आहवान।।

किसी जाति में जन्म लेने से 
कोई नीच नहीं होता।
बुरे कर्म करे, वो नीच है,
क्यों विवेक का परिचय अंतरात्मा से नहीं होता???

गुणहीन ब्राह्मण भी नहीं होता पूजनीय,और पूजनीय हो सकता है गुणी चंडाल।
जाति नहीं,कर्म मापदंड हो व्यक्तित्व का,भेद भाव नीति विकराल।।


*मन चंगा तो कठौती में गंगा*
एक ही पंक्ति में समझा गया जीवन का सार।
कोई राग न हो,कोई द्वेष न हो,
कोई कष्ट न हो,कोई क्लेश न हो
न हो मन में कभी कोई अहंकार।

निर्मल मन में वास प्रभु का,
वहीं ले लेते हैं ईश्वर अवतार।
पावन मन भगवान का मंदिर,
हों दूर मन से समस्त विकार।।

खुद ही मिल जायेंगे ईश्वर,
गर चित में नहीं होगा अभिमान।
विशाल हाथी शक्कर दानों को न
बीन पाए,पर छोटी चींटी लेती है जान।।

*जाति जाति में जाति है
ज्यों केतन के पात।
रैदास मानुष ना जुड़ सकें
जब तक जाति न जात*

छीलो किसी केले के तने को,
पत्ते भीतर, निकलता रहेगा पात।
पेड़ खत्म हो जाएगा पूरा,
मिलेगी विनाश की सौगात।

जाति वाद से बंट जाता है मानुष,
खतम हो जाता है कतई,
 बस रह जाती है जातियां
ये कैसे इंसा ने ही बनाए हालात।।

भगति में होती है शक्ति,
समझा गए संत शिरोमणि रविदास।
जिसके दिल में दिन रात राम का वास है, बन जाता है राम समान,सतत होता है उसका विकास।।
इतनी शक्ति राम नाम में
कभी काम क्रोध का ना होवे वास।।

*रैदास कनक और कंगन माहि जिमी अंतर कुछ नाही
तैसे ही अंतर नहीं हिंदुअन तुरकन माहि*
एक ही हैं राम रहीम,एक ही खून एक ही खाल और एक सा ही मास।
कहा माधव ने जो गीता में, कह गए,संत रविदास।।
        स्नेह प्रेमचंद





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