अक्सर माँ याद आ जाती है
खोलती हूँ जब कपाट अलमारी के,
याद माँ की उभर कर आती है
कहीं होती है जब बदलाव की इच्छा
तब माँ की याद आ जाती है
माँ से शुरू होती है दुनिया
माँ पर ही सिमट सी जाती है
कोने में पड़ा बैग चिढ़ाता है अक्सर
अब देखूं कहाँ ये जाती है
नही सहजता और सुकून माँ सा कहीं और
अँखियाँ नीर बहाती है
अक्सर माँ याद आ जाती है
बुनती हूँ जब कोई फंदा
मुझे माँ याद आ जाती है
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