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पूछता है जब कोई(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

पूछता है जब कोई जन्नत है कहां??
 हौले से मुस्कुरा देती हूं मैं,
 और याद आ जाती है मां।।

जीवन के तपते मरुधर में
 मां सबसे ठंडी है छा।।
लगती है जब चोट कभी 
मुख से निकले केवल मां।। 
और परिचय क्या दूं तेरा??
 मां है तो सुंदर है जहां।।

वात्सल्य का गहरा सागर है मां 
प्रेम का भरी गागर है मां 
सुरक्षा की गंगोत्री है मां 
धीरज की गंगा है मां
 समझौते की डफली है मां 
 अनुराग की पराकाष्ठा है मां
 शक्ल देख कर हरारत पहचानने वाली केवल और केवल होती है मां
 हमें हम से बेहतर जाने वाली मा ही तो होती है।हमें गुण और दोष दोनों के संग अपनाने वाली पूरे जहान में मात्र मा ही होती है। मैंने भगवान को तो नहीं देखा पर जब जब देखती हूं मां की ओर भगवान अपने आप ही नजर आ जाते है।
 मां से गहरा कोई सागर नहीं
 मां से ऊंचा कोई गगन नहीं 
मां से धीरज वाली कोई धारा नहीं 
मां से शीतल कोई पवन नहीं
 मां से अधिक अडिग कोई पर्वत नहीं मां से हरी कोई हरियाली नहीं 
मां से अधिक सुकून कहीं भी नहीं कहीं भी नहीं।।
सबसे धनवान होते हैं वह जिनके पास मां होती है। यूं ही तो नहीं कहा जाता मरुधर में मां ठंडी छांव होती है। उस दिन हमारे सारे धर्म-कर्म सब व्यर्थ हो जाते हैं यदि हमारे कारण हमारी मां की आंखों में आंसू आ जाते हैं।मां बनकर मां के धड़धड़ाते से विराट व्यक्तित्व का अनुभव होता है ।
थरथराते हुए पुल सा अपना अस्तित्व मां के समकक्ष नजर आता है।
 धन्य हैं वे जो समय रहते मां को स्नेह और सम्मान देते हैं और वक्त देते हैं। मां को दो मीठे बोल और थोड़ा सा हमारा समय चाहिए होता है बाकी तो सारी उम्र मां देती ही देती है। हमारे जन्म से अपनी मृत्यु तक जो दिल में हमें बसाती है, कोई और नहीं वह प्यारे बंधु सिर्फ और सिर्फ मां कहलाती है।
 एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा हुआ है पूरा जहान।
ना कोई था ना कोई है ना कोई होगा मां से बढ़कर कभी महान।।
 जहन्नुम को जन्नत मा ही तो बना सकती है।
और परिचय क्या दूं तेरा ?????

नहीं शब्दों में ताकत है ना भाव में सामर्थ्य है जो मां तेरे बारे में लिखूं। तूने तो मुझे ही लिख डाला तो मैं कहां से वह स्याही लाऊं कहां से वह तख्ती लाऊं जो तेरे बारे में लिख सकूं।।

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