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दस्तावेज(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मात्र तस्वीर ही नहीं,अतीत के दस्तावेज होती हैं ये तस्वीर पुरानी।
हस्ताक्षर होती हैं ये गुजरे जमाने की,
सच ज़िंदगी तेरी मेरी कहानी।।

हैसियत नहीं थी तब,पर हसरतें अक्सर मचल जाती थी।
पूरी ना भी होती थी तो कोई चित चिंता नहीं सताती थी।।
अब हैसियत है मगर उनींदी सी हो गई है हसरतें,पहले यही हसरतें पींग बढाती थी।।
हैसियत और हसरतों की बड़ी अजब सी है कहानी।
मात्र तस्वीर ही नहीं,अतीत का दस्तावेज होती हैं ये तस्वीर पुरानी।।

कितना प्यारा कितना महफूज था बचपन सच मां के साए तले।
 यह सच्चाई है बेशक थोड़ा अभावों में हम ज़रूर थे पले।।
पर आमों की पेटी,दूध की बाल्टी,माखन के पतीले,लस्सी की बिलोवनी सब कुछ प्रचुर मात्रा में मिले।।
आज जब माजी में लगी झांकने,
हो सी गई जैसे दीवानी।
मां को कितनी चिंता होती थी,
मेरी बेटियां हो गई हैं सयानी।।
सच मां तो पर्याय होती है ईश्वर का,
हम मां की ही तो हैं निशानी।।
जिंदगी और कुछ भी नहीं,
सच है तेरी मेरी कहानी।। 


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