कौन सा दिवस है जो बिन महिला के, होगा किसी को भी स्वीकार??
दादी, नानी,मां,बहन, बेटी, पत्नी हर किरदार में, नारी रही दमदार।।
मैने ईश्वर को तो नहीं देखा,
पर जब जब देखा मां को,
हो गए ईश्वर के दीदार।
शक्ल देख हरारत पहचान लेती है,
पढ़ लेती है नयनों का संसार।
बिन कहे ही जान लेती है जो मन की,
ऐसी मां से ही पूर्ण होता परिवार।।
कौन सा दिवस है जो बिन नारी के,
होगा किसी को भी स्वीकार।।
पूछता है जब कोई जन्नत है कहां???
हौले से मुस्कुरा देती हूं मैं और याद आ जाती है मां।।
मां ही चैन,मां ही सुकून मां ही जन्नत मां ममता का आधार।
कौन सा दिवस है जो बिन महिला के,होगा किसी को भी स्वीकार।।
घर आंगन दहलीज है बेटी
सुर सरगम संगीत है बेटी
सौ बात की एक बात है,
हर रिश्ते में सबसे अजीज है बेटी।।
मां बेटी से प्यारा होता है कोई भी नाता???
नज़र और नजरिए से मुझे तो यही समझ में आता।।
बेटी जीवन का है सबसे सुखद आभास
सच में बेटी अल्फाज नहीं,बेटी तो है सबसे सुखद अहसास
सुनने में बेशक अच्छा लगता है बेटा हुआ है,
पर सही मायनो में धनवान हैं वे,हैं बेटी जिनके पास
और अधिक नहीं आता कहना,
बेटी तो होती है ऐसी,जैसे तन में श्वास।।
बहुत ही प्यारी बहुत ही न्यारी होती है बेटियां
ओस की बूंद सी नाजुक होती हैं बेटियां,
जीवन के इस मरुधर में,होती हैं ठंडी सी फुहार।
आस,विश्वास,पर्व,उत्सव,उलास होती हैं बेटियां,
होती हैं कुदरत का अनमोल उपहार।
एक नहीं दो घरों को रोशन करती हैं बेटियां प्यारी।
एक सजाएं बाबुल का अंगना,
दूजे सजन की फुलवारी।।
बहन रूप में भी नारी का कोई जवाब नहीं।
मां का अक्स नजर आता है मां जाई में,सच में ऐसे प्रेम का कोई हिसाब नहीं।।
Good नहीं,better नहीं,the best होती है मां जाई।
किसी को जल्दी,किसी को देर से,
बात ये गहरी समझ में आई।।
अर्धांगनी बिना तो सफर जीवन का,सच आधा रह जाता है।
खून का तो नहीं,ये संपूर्ण समर्पण और विश्वास का जन्मों जन्मों का नाता है।।
मात पिता बहन भाई सब छोड़ जब वो पास तुम्हारे आती है।
प्रेम से पहले मिले उसे सम्मान,ये जिम्मेदारी तुम्हारी बन जाती है।।
कुछ नहीं बहुत कुछ करती है दर गुजर,बहुत कुछ करती है दर किनार।
यही प्राथमिकता रहती है उसकी,
बसा रहे प्रेम भरा उसका संसार।।
प्रेम से पहले नारी को सम्मान की होती है दरकार।
दिल जीत सकते हो उसका,बस चाहिए सच्चा प्रेम,विश्वाश ,मधुर वाणी और अच्छा व्यव्हार।।
सीता तो हो सकती है,मगर बुद्ध नहीं हो सकती नारी।।
अग्नि परीक्षा दे कर भी,वन गमन की आ गई बारी।।
बुद्ध तो पत्नी पुत्र को सोया छोड़ चले सत्य की खोज में,तो भगवान बुद्ध कहलाए।
सीता गर चली जाती लव कुश को छोड़ कर,तो मलिन हो जाते ममता के साए।।
त्याग और संयम की प्रकाष्ठा नारी,
मत लो उसकी परीक्षा तुम बार बार।
बहुत शक्ति है उसके त्याग संयम और स्मर्पण में,नारी जीवन का सच्चा अलंकार।।
कोमल है नारी,मगर कमज़ोर नहीं
शक्ति है नारी,नारी ही है संस्कार।
ममता है नारी,प्रेम है नारी,
अनुशासन है नारी,धीरज है नारी
लगन है नारी,प्रीत है नारी
जब इतने गुणों से लबरेज है नारी
फिर भी वो समाज में महफूज नहीं।
छोटी सी बात पर गहरी सी बात,
तनिक सब करो zra इस पर विचार
जिम्मेदारी संग नारी को भी चाहिए अधिकार।।
एक कमरा उसका भी हो,
ब्याह के बाद भी मायके में हो इसकी हकदार।।
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