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Women's day special नमन नमन हे नारी शक्ति( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

नमन नमन हे नारीशक्ति!
नमन नमन तुझे बारम्बार।
करुणा,विवेक,सौंदर्य की त्रिवेणी, मानवता का अद्वितीय श्रृंगार।।

सृजन की मूरत,ममता की सूरत,
प्रेम बनाया जीवन आधार।
तमस में आलोक हो,पुष्प में पराग हो, हो शिक्षा तुम, हो तुम्ही संस्कार।।

उत्सव भी तुम हो,उल्लास भी तुम हो,हो तुम्ही नारी, सारे रीति रिवाज।
तुमसे ही बजता है सृष्टि के हर कोने में,जिजीविषा का सुंदर सा साज़।।

मरियम,सीता,अनुसूया तूँ,
तूँ ही राधा,मीरा ,पांचाली।
बहन,बेटी,पत्नी,माँ हर किरदार में उत्तम चलाई कुदाली।।
घर को मंदिर बनाने वाली,
खुद गीले में रह कर बच्चों को
 सूखे में सुलाने वाली,
शक्ल देख हरारत पहचानने वाली,
शिक्षा के भाल पर संस्कारों का टीका लगाने वाली,
वात्सलय निर्झर बहाने वाली,
हुआ नतमस्तक पूरा संसार।
नमन नमन हे नारीशक्ति,
नमन नमन तुझे बारम्बार।।

सर्वत्र पांव पसारे तूने,
हर क्षेत्र को कर दिया आबाद।
सीमित उपलब्ध संसाधनों में भी, तूने,कर्म का सदा बजाया शंखनाद।।
सबको लेकर साथ चली तुम,
निभाया सर्वोत्तम हर किरदार।
संयम,संतोष,कर्मठता की त्रिवेणी,
मानवता का अद्भुत श्रृंगार।।

बेटी कभी नही होती पराई,
ये भी सार्थक करके दिखाया।
ताउम्र मात पिता को तूने 
अपने हिवड़े में प्रेम से बिठाया।।
तेरी प्रतिबद्धता, 
तेरे प्रयासों के आगे जहान ये नतमस्तक हो आया।।
धन्य धन्य हे नारीशक्ति!
शमन कर देती हो सारे विकार।
कोमल हो कमज़ोर नही,
तुझ से ही सजता है संसार।।
नमन नमन हे नारीशक्ति! 
नमन नमन तुझे बारम्बार।।
प्रेम से पहले सम्मान चाहिए तुझे,
हो तुम उसकी हकदार।
छोड़ बाबुल की बगिया,महका देती 
हो सजन का घर द्वार।।
एक नहीं दो घरों को करती हो रोशन,
आरुषि ज्योत्सना का निभाती किरदार।।
सृष्टि की तुम धुरि हो नारी,
तुझ से बनता परिवार।

सामंजस्य,संतोष,सहभागिता की त्रिवेणी,मानवता का अदभुत श्रृंगार।।।
सहती भी हो,चुप रहती भी हो,
पर अन्याय तुझे नही स्वीकार।
हद से गुजर जाता है जब पानी,
चंडी का ले लेती हो अवतार।।
नारी तन के भूगोल की जगह
नारी के मनोविज्ञान को पढ़े पुरुष,
उसके मन की थाह का यही आधार।।
नमन नमन हे नारीशक्ति!
नमन नमन तुझे बारम्बार।
दया,विनम्रता,समृद्धि की देवी,
हो मानवता का अदभुत श्रृंगार।।
सीता तो हो सकती है,
मगर बुद्ध नहीं हो सकती नारी।
सोती पत्नी और पुत्र को छोड़ गए गौतम सत्य की खोज में तो वे भगवान बुद्ध कहलाए।
सीता चली जाती लव कुश को छोड़ तो,हो जाते मलिन ममता के साए।।
मां रूप में तो नारी है पूरे सम्मान और प्रेम की हकदार।
वो निर्भय रहे,वो महफूज रहे,
मिलें जिम्मेदारी संग उसे अधिकार।।
नमन नमन हे नारी शक्ति,
नमन नमन तुझे बारंबार।।
                       स्नेह प्रेमचन्द
                    एल आई सी हिसार 1

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