सजल से हो जाते हैं नयन,
जब जिक्र तेरा जेहन पर दस्तक दे जाता है।
भीगा सा जाता है ये अंतर्मन,
चित चहुं दिशा में,सब सीला सीला पाता है।।
पहले तो आई नहीं समझ,
पर अब बखूबी समझ आता है।।
कितना सूना हो जाता है जग इतना बड़ा,
जब कोई बहुत ही खास चला जाता है।।
अब लगता है यूं हीं तो नहीं,
ये सावन भादों इतने गीले गीले होते हैं।
ये दो मास हैं प्रतिबिंब उस पूरे साल के,
जिनमे जाने कितने ही लोग कितने ही अपनों की याद में खुल कर रोते हैं।।
मखमल के बिछोने भी लगते हैं टाट से, फिर चैन से हम कब सोते हैं?????
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